हमारे इस कथनका यह आशय न समझ लिया जाय कि रामायण और भारतके पात्र पृथ्वीपर पैदा ही नहीं हुए, या उन्होंने इन काव्योंमें वर्णित कार्योंको नहीं किया। वे सब लोग हुए और उन्होंने उन कार्योको भी किया। किन्तु उनके उन कार्योका वर्णन परवर्ती कवियोंके द्वारा किया गया— और उनमें परवर्ती कविने पूर्ववर्ती कविका बहुत कुछ अनुकरण किया और पूर्ववर्ती कविने भी लोकपरम्पराके मुखसे सुने गये उपाख्यानके वर्णन करने में अपनी कवित्वशक्तिका उपयोग किया। इसी कारण हमने इन दोनों ग्रंथोंको, इतिहास होनेपर भी, महाकाव्य कहा है।
आपका जी चाहे तो आप महाभारतको रामायणका अनुकरण न कहें; परन्तु याद रखिए, अनुकृत और अनुकारीमें इससे अधिक समानता आपको बहुत कम मिलेगी । मगर देखिए, हमारी समझमें महाभारत रामायणका अनुकरण होकर भी पृथ्वीमें अद्वितीय है। अगर इसकी तुलना हो सकती है तो कुछ अंशोंमें रामायणसे । परन्तु, संपूर्ण नहीं । क्योंकि महाभारतमें बहुतसे नवीन पात्र और घटनायें ऐसी हैं जो रामायणमें नहीं हैं। महाभारतके श्रीकृष्ण, बलराम, भीष्म, कर्ण, सुभद्रा आदि रामायणमें नहीं हैं । पात्रोंके स्वभावोंमें भी, स्थूलरूपसे समता होनेपर भी, सूक्ष्मरूपसे अन्तर है। एक सीता और द्रौपदीको ही लीजिए । द्रौपदीकी प्रचण्डता और तेजस्विता सीताजीमें नहीं है; केवल उसकी झलक रावणको अशोक-वाटिकामें फटकारते समय सीताजीमें पाई जाती है।
साहित्यको देख चुके, अब समाजको देखिए । जब रोमवालोंको यूना- नकी सभ्यताका पता लगा, तब वे मन-वाणी-कायासे उसका अनुकरण करने लगे। उसका फल यह हुआ कि किकरो ऐसे वक्ता, तासितस ऐसे इतिहास- लेखक, वर्जिल ऐसे महाकवि, प्लाटस और टेबिन्स ऐसे नाटककार, होरेस और ओबिदा ऐसे गीतकाव्य बनानेवाले, पेपिनियन ऐसे व्यवस्थाकार, सेनेका ऐसे धर्मनीतिप्रणेता, आन्तनैन ऐसे राजधर्म पालनेवाले और कुकालस ऐसे भोगासक्त पुरुष रोममें दिखाई पड़े । जनसाधारणका ऐश्वर्य दिन दिन बढ़ा और सम्राटोंने अपनी सौन्दर्य-प्रियताका परिचय देनेवाली बड़ी बड़ी इमारतें बनवाई। यूरोपका हाल ऊपर लिखा ही जा चुका है। इटली और फ्रान्सका
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