पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१४५

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बंकिम-निबन्धावली—
 

है; तथापि चन्द्रमाके साथ उनकी उपमा सम्पूर्ण करनेके लिए उनके कुछ कलंक यहाँपर दिखलाये जाते हैं ।

१—उनका पहला दोष आलस्य है। प्राचीना स्त्रियाँ बहुत ही परिश्रम करनेवाली और गिरिस्तीके कामों में निपुण थीं । नई स्त्रियाँ बिल्कुल बाबू बनी हुई हैं। जलके ऊपर कमलकी तरह स्थिर भावसे बैठकर स्वच्छ दर्प- णमें आप ही अपना रूप देखकर वे दिन बिता देती हैं । घरके कामकाजकी देखरेख प्रायः दासियोंको करनी पड़ती है। इससे बहुत कुछ अनिष्ट हो रहा है। एक तो शारीरिक परिश्रम न करनेके कारण स्त्रियोंके शरीर निर्बल और रोगोंके घर बनते जा रहे हैं। पहले जमानेकी स्त्रियोंके शरीर स्वास्थ्य ठीक रहनेके कारण अपूर्व लावण्यसे युक्त थे । इस समय वह स्वास्थ्यका सलोनापन केवल निम्न श्रेणीकी स्त्रियोंमें पाया जाता है। नवीना स्त्रियोंके नित्यके रोगभोगसे उनके स्वामी, पिता-पुत्र आदि सदा दुःखी और चिन्तित रहते हैं । गृहस्थी भी इसी कारण विशृंखलायुक्त और दुःखसे परिपूर्ण हो उठती है । गृहिणी यदि रोग-शय्यापर पड़ी रहती है, तो घरकी भी रौनक जाती रहती है। धनका ध्वंस होता है और बाल- बच्चोंका भी अच्छी तरह पालन-पोपण नहीं किया जा सकता । इससे उनके भी स्वास्थ्यकी हानि होती है और उनको अच्छी शिक्षा नहीं मिलती। घरमें सर्वत्र दुर्नीतिका प्रचार होता है। जो लोग प्यार करते हैं, वे भी नित्य रोगीकी सेवाके दुःखको सह नहीं सकते । इससे स्त्री-पुरुपके प्रेममें भी कमी होती है। यदि माता असमयमें ही मर गई, तो उससे बच्चोंका ऐसा अनिष्ट होता है कि वे जन्मभर उसका फल भोगते हैं। यह सच है कि अँगरेज जातिकी स्त्रियाँ भी आलस्यके अधीन देख पड़ती हैं; किन्तु वे घोड़ेकी सवारी, वायुसेवन इत्यादि स्वास्थ्यरक्षक व्यायामोंको नित्य नियमित रूपसे करती रहती हैं। हमारे घरके पिंजड़ेकी चिड़ियाँ उन व्यायामोंको नहीं कर सकतीं।

स्त्रियोंके आलस्यका और एक भारी कुफल यह है कि उनकी सन्तान दुर्बल और कम जीनेवाली होती है। माताके ध्यान न देनेसे ही अक्सर बच्चे नित्यरोगी देखे जाते हैं, और उनकी अकालमृत्यु तक हो जाती है। बहुत लोग कहते है कि पहले इतने रोग न थे, इस समय नित्य रोगोंका.

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