इस बातका पता लगाना बहुत कठिन है कि सांख्यकी प्रथमोत्पत्ति कब हुई थी। संभवतः यह बौद्धधर्मके पहले प्रचारित हुआ था। किंवदन्ती है कि कपिलमुनि उसके प्रणेता हैं और इस किंवदन्तीपर अविश्वास करनेका कोई कारण नहीं है। किन्तु वे कौन थे और कब उनने जन्म ग्रहण किया था, यह जाननेका कोई उपाय नहीं है। केवल यही कहा जा सकता है कि उनके समान बुद्धिशाली व्यक्ति पृथिवीपर बहुत थोड़े ही हुए हैं । पाठक स्मरण रक्खें कि हम ‘निरीश्वर सांख्य 'को ही सांख्य कहते हैं। पतञ्जलिप्रणीत योगशास्त्रको ‘सेश्वर सांख्य ' कहा जाता है, जिसका इस निबन्धसे कोई सम्बन्ध नहीं है।
यद्यपि सांख्यदर्शन बहुत प्राचीन है; परन्तु इस समय विशेष प्राचीन सांख्य- ग्रन्थोंका अभाव है। 'सांख्य-प्रवचन' को बहुत लोग कापिल सूत्र कहते हैं; परन्तु वह कपिलप्रणीत कभी नहीं हो सकता। वह बौद्ध, न्याय, मीमांसा आदि दर्शनोंके प्रचारके बाद प्रणीत हुआ है और उसमें इस बातके प्रमाण मौजूद हैं। उसमें इन सब दर्शनोंका खण्डन किया गया है । इसके अतिरिक्त जो सांख्यकारिका, तत्त्वसमास, भोजवार्तिक, सांख्यसार, सांख्य- प्रदीप, सांख्यतत्त्व-प्रदीप आदि ग्रन्थ और इन सबके टीकाग्रन्थ मिलते हैं, वे सब अपेक्षाकृत नवीन हैं। कपिल अर्थात् सांख्यदर्शनके प्रथम अध्यापकका जो मत है, वही हमारे लिए आदरणीय और समालोच्य है। आगे कपिल-सूत्रोंके आधारसे हम सांख्यदर्शनकी मोटी मोटी बातें बहुत संक्षेपमें समझानेका यत्न करेंगे—
कुछ विज्ञ लोग कहते हैं कि यह संसार सुखमय है। हम लोग सुखभोगके लिए ही इस पृथिवीपर प्रेरित हुए हैं। जो कुछ दिखलाई देता है वह सब जीवोंके सुखके लिए सृष्ट हुआ है। जीवोंके सुखविधानके लिए ही सृष्टिकर्त्ताने जीवसृष्टि की है। देखते नहीं हो, सृष्ट जीवोंके मंगलके लिए सृष्टिमें कितना चातुर्य प्रयुक्त हुआ है ?
कुछ लोग इसके विपरीत कहते हैं कि संसारमें सुख कहीं नहीं दिखाई देता—दुःखोंकी ही प्रधानता है। यह तो हम नहीं जानते कि सृष्टिकर्त्ताने किस अभिप्रायसे जीवसृष्टि की है—मनुष्यबुद्धि इसे सोच भी नहीं सकती
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