बाबा—अच्छा, बताओ उनका शरीर कैसा है।
बाबू—तुम लोग ही उनको चतुर्भुज कहते हो।
बाबा—ठीक है, उनको चतुर्भुज कहते हैं। उनकी चारों भुजाओंमें क्या क्या चीजें हैं।
बाबू—शंख, चक्र, गदा और पद्म।
बाबा—एक एक करके समझो। पहले पद्मको लो। किन्तु उसके पहले यह देखो कि ईश्वर करते क्या हैं ?
बाबू—क्या करते हैं ?
बाबा—सृष्टि, स्थिति, प्रलय । सृष्टिके सम्बन्धमें दो मत हैं। एक मत यह है कि आदिमें जगतका कुछ उपादान भी न था। ईश्वरने पहले उपादान (पञ्चतत्त्व ) उत्पन्न करके फिर उससे सृष्टिरचना की है। और एक मत यह है कि जगतके उपादान नित्य हैं। ईश्वर हरएक कल्पमें उनसे सृष्टिरचना करते हैं। इस दूसरे प्रकारकी सृष्टिकी शक्ति जगतके केन्द्र में है। सुना है कि साहबलोगोंका भी शायद इसी तरहका एक मत है☆। सृष्टिका मूलस्वरूप यह जगत्-केन्द्र ही हिन्दुओंके शास्त्रोंमें नारायणकी नाभिका कमल कहा गया है, अतएव विष्णुके हाथका पद्म सृष्टिक्रियाकी प्रतिमा है।
बाबू—अच्छा, और तीनों चीजें ?
बाबा—गदा प्रलयक्रियाकी प्रतिमा है। शंख और चक्र दोनों स्थिति-क्रियाकी प्रतिमा है। जगतकी स्थिति स्थान और कालमें है। स्थान है आकाश । आकाश शब्दवाही और शब्दमय है। इसीसे शब्दमय शंख आकाशकी प्रतिमाके रूपसे विष्णुके हाथमें स्थापित किया गया है।
बाबू—और चक्र ?
बाबा—यह काल-चक्र है। कल्प, युग, मन्वन्तर आदिके फेरसे काल घूमा करता है। इसी कारण कालको चक्ररूपसे ईश्वरके हाथमें स्थान मिला है। जगदीश्वर अपनी चार भुजाओंमें आकाश, काल, शक्ति आरै सृष्टिको धारण किये हुए हैं । अब समझे कि विष्णुके शरीर नहीं है। विष्णु वैकु-
☆ La Placiau hypothesis.
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