पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/२२

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गौरदास बाबाकी झोली।
 

ण्ठके ईश्वर हैं, इसका तात्पर्य यह है कि कुण्ठाशून्य निर्भय विरक्त पुरुष हरघड़ी हृदयमें स्रष्टा-पाता-हर्ता रूपसे ईश्वरका ध्यान करते हैं।

बाबू—तो फिर बस इतना कह देना ही काफी था । इस बातको तो सभी स्वीकार करते हैं। यह रूपक रचनेकी क्या जरूरत थी?

बाबा—यह भी तो सब स्वीकार करते हैं कि कलकत्ता अँगरेजोंकी राजधानी है, तो फिर किलेपर अँगरेजी झंडा खड़ा करनेकी क्या जरूरत है ? पृथ्वीपर सभी कामोंमें इस तरहकी कल्पना देखी जाती है । फिर मुझ ऐसे मूर्खके भक्तिके मार्गमें यों काँटे सैंधनकी चेष्टा क्यों करते हो भैया ?

बाबू—अच्छा यदि सचमुच विष्णुके शरीर नहीं है, तो फिर श्याम वर्ण किसका है ? जिसके शरीर ही नहीं उसके रंग कैसा ?

बाबा—आकाशका भी तो श्यामवर्ण देखा जाता है, किन्तु क्या आकाशके शरीर है ? अच्छा तुम्हारा अँगरेजी शास्त्र क्या कहता है ? जगत् अन्धकारमय है या प्रकाशमय ?

बाबू—जगत् अन्धकारमय है।

बाबा—इसीसे विश्वरूप विष्णुका रंग श्याम है।

बाबू—किन्तु जगतमें सूर्योदय भी तो होता है—प्रकाश भी तो है।

बाबा—विष्णुके हृदयमें कौस्तुभमणि है । कौस्तुभ—सूर्य है, और वन—माला—ग्रह नक्षत्र आदि ।

बाबू—अच्छा तो क्या यह जगत् ही विष्णु है ?

बाबा—नहीं, जो जगतमें सर्वत्र व्याप्त हैं वे ही विष्णु हैं। जगत् शरीर है और वे आत्मा हैं।

बाबू—अच्छा, अशरीरी परमेश्वरके दो स्त्रियाँ क्यों हैं ?—लक्ष्मी, और सरस्वती।

बाबा—कोश खरीदकर देखो। लक्ष्मीका अर्थ है शोभा या सौन्दर्य । रमा आदि लक्ष्मीके और और नामोंका भी यही अर्थ है। सरस्वतीका अर्थ है ज्ञान । विष्णु सत् हैं, सरस्वती चित् हैं और लक्ष्मी आनन्द हैं। इसीसे अरे मूर्ख ! सच्चिदानन्द परब्रह्मको प्रणाम कर ।