पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/३१

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बंकिम-निबन्धावली—
 

मैं—व्रज धातु? आठ धातुएँ तो मुझे मालूम हैं। व्रज धातु कौनसा धातु है?

बाबाजी—धातु है 'व्रज गमने'-व्रज, अर्थात् जानेवाला।

मैं—जो जाता है वही व्रज है? गऊ जाती है, तुम जाते हो, मैं जाता हूँ, सब व्रज है?

बाबाजी—सब व्रज है। जानता है, जगत् किसे कहते हैं?

मैं—यही विश्व जगत् है।

बाबाजी—जगत् शब्द किस धातुसे बना है?

मैं—धातुको छोड़कर जो पूछिए वह मैं बताऊँ। यह शब्द सुनते ही मुझे एक प्रकारका भय लगता है।

बाबाजी—'गम' धातुसे जगत् बना है। जो जाता है वही जगत् है। विश्व नाशशील है, इससे वह भी जगत् है। ब्रज शब्द और जगत् शब्दका एक ही अर्थ है।

मैं—तो क्या व्रज कोई एक जगह नहीं है? मैं कहता हूँ वृन्दावन ही व्रज है।

बाबाजी—वृन्दावन नामका शहर बंगालके वैष्णवोंने बना लिया है।

मैं—तो पुराणमें वृन्दावन किसे कहा है?

बाबाजी—'वृन्दा यत्र तपस्तेपे तत्तु वृन्दावनं स्मृतम्'-वृन्दाने जहाँ तप किया ( करती है, कहना ठीक होगा ) वही वृन्दावन है।

मैं—वृन्दा कौन?

बाबाजी—राधाषोडशनाम्नां च वृन्दा नाम श्रुतौ श्रुतम्। तस्याः क्रीडावनं रम्यं तेन वृन्दावनं स्मृतम् ॥' राधा ही वृन्दा है।

मैं—राधा कौन?

बाबाजी—राध धातु—

मैं—धातु छोड़ो बाबाजी!

बाबाजी—" राध साधने प्राप्तौ तोषे पूजायां वा।" जो ईश्वरकी साधना करता है, उनको पाता है, उनकी पूजा या आराधना करता है, वही राधा है। तुम जब सच्चे ईश्वरके भक्त हो जाओगे तब राधा हो सकोगे।

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