पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१११

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बगुला के पंख १०६ कस लिया और उसके अनगिनत चुम्बन ले डाले । पद्मादेवी का शरीर निढाल हो गया । उसने एक प्रकार से अपने को जुगनू के अंक में समर्पित कर दिया। सिसकते हुए उसके कांपते हुए कण्ठ से ये शब्द निकले, 'मोह प्रियतम, मैं भी मर रही हूं। तुम्हारे बिना मेरा जीवन दूभर है ।' 'तो तुम शोभाराम को प्यार नहीं करती ?' 'प्रोह ! मेरे लिए वह मुर्दा आदमी है ।' उसने आंखें बन्द कर लीं और उन अांखों से झर-झर आंसू बहने लगे। उद्वेग से उसका सीना उठ-वैठ रहा था। आंसू बहती हुई आंखों पर जुगनू बारंबार चुम्बन अंकित करने लगा। पद्मादेवी ने कहा, 'वर्षों हो गए, मैंने उनके शरीर का स्पर्श नहीं किया। वे चिर- रोगी हैं । मैं एक पत्थर के देवता की पूजा करती हुई जी रही हूं। लेकिन लेकिन वह आगे न बोल सकी। 'तो प्रिये, मैं भी तुम्हारे ही लिए जीवित हूं।' वह धीरे-धीरे जुगनू के आलिंगनपाश से अलग हो गई। उसने अपने आंसू पोंछ लिए और कहा, 'इस तरह इच्छाओं के वशीभूत होना अच्छा नहीं है।' 'लेकिन मैं तुम्हारे प्रेम का भूखा हूं।' 'तुम प्रेम को एक भूख समझते हो, पर मैं उसे दो आत्माओं का सुखद मिलन । जब से मैंने तुम्हें देखा है, मैं अपनी अन्तरात्मा में तुम्हारी स्मृति मात्र से ही एक मिलन-सुख का अनुभव करती रही हूं। परन्तु शायद ये सारी ही बातें बेकार हैं।' 'क्यों प्रिये, बेकार क्यों हैं ? मैं तुम्हारा चिरदास तुम्हारी सेवा में हूं।' 'तुम यहां से चले गए, मैं समझती थी कि मैं यह सहन नहीं कर सकूँगी, पर अब समझती हूं अच्छा ही हुआ ।' उसने एक सिसकारी भरी । जुगनू ने कहा, 'यदि मुझे तुम्हारी जैसी कोई स्त्री मिलती तो मैं निश्चय ही उससे विवाह करके अपने को बड़भागी समझता।' पद्मादेवी ने एक चितवन उसपर फेंकी। ऐसी चितवन जो पुरुष को स्त्री का दास बना लेती है । फिर अपनी आंखें नीची कर ली। कुछ देर बाद उसने कहा, 'शायद हम लोगों को पहाड़ पर जाना पड़ेगा। डाक्टर का कहना है, यह अब बहुत ही जरूरी है।'