बगुला के पंख १२५ ३५ जुगनू एक कल्पनाशील व्यक्ति था, यह तो हमें स्वीकार करना पड़ेगा। कल्पना और कठोर परिश्रम ; बस, यही दो वस्तु उसके सारे कारोबार की पूंजी थीं । साहसिक भी उसे कहा जा सकता था। प्रकृति ने उसे पूर्ण स्वस्थ शरीर दिया था । और अभी वह अपनी जवानी के मध्य भाग के इसी छोर पर था, पैंतीस बरस की आयु तक भी नहीं पहुंचा था । यही वह आयु है जब यदि भाग्य अनुकूल हो तो कल्पना और श्रम उत्तम स्वास्थ्य के साथ मिलकर जीवन को रंगीन कर देते हैं। इधर वह नियमित रूप से अध्ययन भी कर रहा था । अध्ययन से उसमें गम्भीरता और ज्ञान की वृद्धि हुई थी। और अपनी प्रत्येक विषय की अनभिज्ञता को छिपाने का कौशल भी प्राप्त हुआ था। वह इस समय एक उच्च और ज़िम्मेदार पद पर पहुंच चुका था। उसकी त्रुटियां असाधारण थीं, पर आकांक्षा दुर्दमनीय और अपरिसीम थी । रुपया अब बरसाती नदी की भांति उमड़ता हुआ उसके हाथों में आ रहा था। आमदनी के गुप्त और प्रकट नये-नये अप्रत्याशित जरिए उसके सामने आते जा रहे थे । अनगिनत आदमियों की भीड़ गरजमन्द की भांति उसे घेरे रहती थी। उसने नीति बनाई थी-सबको खुश रखना और सबसे लाभ उठाना। इसलिए वह खूब सावधानी से प्रत्येक काम करता था। वह मेधावी पुरुष था । एक बात तत्त्वतः उसने समझ ली थी कि हर प्रकार की कठिनाई और दुर्गमता के विरुद्ध घोर संघर्ष का नाम ही सच्चा जीवन है । भाग्य ने उसके जीवन को झकझोर डाला था और अधिकांश लोगों को जो बात भयंकर प्रतीत होती है, वह उसपर कोई प्रभाव नहीं डालती थी। सुख-चैन की ज़िन्दगी वह इस समय व्यतीत कर रहा था । पर सुख-चैन से उसे ज़रा भी दिलचस्पी न थी । वासना उसमें प्रचंड थी । वह कामी पुरुष था । स्त्री की भूख उसे हर समय सताती रहती थी और इसके लिए वह किसी भी कठिनाई को असाध्य न समझता था । नवाब उसकी आंख और हृदय था, जो एक जहांदीदा और हद दर्जे का व्यवहार-कुशल, चतुर कौवा आदमी था । जुगनू के सब गुण-दोष उसने परख लिए थे। और वह उसे अपना एक हथियार बनाए हुए था। वह जानता था- रंडी की दलाली के रज़ील पेशे की अपेक्षा जुगनू जैसे आदमी की दलाली में कहीं
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