१५६ बगुला के पंख माडर्न रमरिणयां अपने कपड़ों से फट पड़नेवाले यौवन की बहार दिखाती हुई और टाई फरफराते अफसर लोग और उनकी मोटरों की कभी न समाप्त होने- वाली कतारें । आप जानते हैं ये सब क्या हैं ?' 'आप ही बताइए।' 'विदेशियों की आंखों को भूखे और परेशान' भारत की भूठी शान और नकली ऐश्वर्य दिखाने का ढोंग । और भारतवासियों की आर्थिक, मानसिक, राजनैतिक पूर्णता का प्रचार करने का हथकण्डा । इसके अतिरिक्त एक बात और। 'वह क्या ? 'कमअक्ल, रूप के दीवाने, नौजवान लड़कियों के शिकारी नौजवानों के लिए नई दिल्ली एक ऐसी शिकारगाह है जहां ढेर पालिश्ड लड़कियां आसानी से मिल जाती हैं।' जुगनू ने हंसने की चेष्टा की। वह अपनी रसिकता प्रकट करना चाहता था, परन्तु परशुराम के तेवर देखकर ठंडा पड़ गया। परशुराम ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, 'आपने एक बात पर विचार किया ?' 'कौन बात?' 'नई दिल्ली में दो नई जातियों का निर्माण हो रहा है।' 'ये दो नई जातियां कौन-कौन-सी हैं।' 'एक अफसर की जाति, दूसरी क्लर्क की। दोनों ही पतलून पहनते हैं ; अंग्रेजी बोलते हैं और अंग्रेज़ी ढंग से रहना पसन्द करते हैं। सिर्फ दोनों में अंतर इतना ही है कि एक को तनखाह अधिक मिलती है और दूसरे को कम । हैं दोनों ही नौकर। पर अधिक तनखाह पानेवाला कम तनखाह पानेवाले को अछत समझता है । वह उसके पास उठना-बैठना, खाना-पीना पसन्द नहीं करता है। न बेचारा क्लर्क अफसर के सामने कुर्सी पर बैठ सकता है, न सिगरेट पी सकता है । बिलकुल उसकी वही दशा है जो कभी सुल्तानी ज़माने में हिन्दुओं की थी, 'कि न घोड़े पर चढ़ सकते थे न अच्छे कपड़े पहन सकते थे। सरकारी मकानों में भी भेद-भाव प्रकट है । अफसरों के शानदार बंगले हैं । पर बेचारे इन क्लर्कों के लिए क्वार्टर , यानी छोटे-छोटे घोंसले, जहां वे लस्टम-पस्टम अपनी बाबूगिरी की ज़िन्दगी घसीटते हुए जीवन के अन्तिम ध्येय पचपन साल तक चलते ही चले
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