पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१६७

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बगुला के पंख . रहती थीं, घर में भी उसके विवाह की बातें होती थीं, परन्तु उसकी चेतना में इन सब बातों का केवल सामाजिक ही रूप था। किसी तरुण पुरुष की काम- भावना से उसका अंग-स्पर्श करने तथा प्रणय-निवेदन करने की यह प्रथम ही घटना थी। अभी कौमार्य के कवच में उसका तन और मन सुरक्षित था। यह कवच शारीरिक भी था और मानसिक भी, परन्तु सर्वथा प्राकृतिक । हम इसे केवल भय और लज्जा ही नहीं कह सकते, हकीकत यह है कि कौमार्य के दुहरे आवरण में-मानसिक आवरण ऊपर है और शारीरिक भीतर-मानसिक आवरण चेतना से, चेतना की संवेदना से अधिक सम्बन्धित है । नर-नारी का भिन्नलिंगी होना केवल शारीरिक ही नहीं है, मानसिक भी है। नर-नारी के जैसे शरीर भिन्न हैं, वैसे ही उनके मन भी भिन्न हैं । निस्संदेह नर और नारी दोनों ही शारीरिक और मानसिक दशाओं में एक दूसरे से भिन्न हैं, कहना चाहिए विपरीत हैं। शारीरिक भिन्नता हम प्रत्यक्ष देखते हैं। पुरुष का शरीर कठोर, चेहरा दाढ़ी-मूंछों से भरा हुआ, आवाज गम्भीर, भारी डीलडौल ; और स्त्री का शरीर कोमल, चेहरा दाढ़ी-मूंछों से रहित, बोलने- चालने और काम करने में नाजुक । परन्तु पुरुष जहां स्त्री में कोमलता, मादकता और नज़ाकत को पसन्द करता है, वहां स्त्री कठोर अंगोंवाले, बड़ी और मोटी हड्डियोंवाले, भरपूर तेजस्वी और वीर पुरुष को पसन्द करती है। स्त्री-पुरुषों की यह विपरीत तत्त्वों की पसन्द कोरी पसन्द ही नहीं है, भूख है। वह विपरीतता शारीरिक विषयों में ही नहीं, मन और स्वभाव में भी है। स्त्रियां प्रायः सलज्ज, भीरु और भावुक होती हैं। पुरुष साहसी और निस्संकोच । इस विपरीत आकांक्षा में नैसर्गिक कारण है—एक तत्त्व का दूसरे में अभाव, और उस अभाव की पूर्ति। हृदय और मस्तिष्क ये दो यन्त्र शरीर की जीवनीय शक्ति के केन्द्र हैं। हृदय में भावुकता, लज्जा, दया और परोपकार की भावना तथा करुणा की तरंगें उठती रहती हैं । और मस्तिष्क में वीरता, साहस, ज्ञान और धैर्य की। स्वभाव ही से पुरुषों में मस्तिष्क की शक्तियों और स्त्रियों में हृदय के आवेग का बाहुल्य' होता है । संक्षेप में प्राणी-जगत् में स्त्री हृदय है और पुरुष मस्तिष्क। दोनों दोनों पर ही निर्भर हैं। मस्तिष्क में चेतना और हृदय में जीवन निहित है। ये ही सब बातें हैं, जो स्त्री-पुरुष के मानसिक और शारीरिक आकर्षण का मूल