पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१६८

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बगुला के पंख हैं। परन्तु प्रकृति ने जो मानसिक और शारीरिक आवरण स्त्री और पुरुष को दिया है, उससे वे संयम और नियमित रूप से परस्पर की शक्ति का साथ ही में मिलकर उपयोग कर सकते हैं। जैसे बिजली के दोनों तार धन और ऋण रबर के आवरण में बद्ध सर्वथा पृथक्-पृथक् किन्तु साथ-साथ रहते हैं, केवल लक्ष्य-बिन्दु पर नग्न होकर मिलते हैं, तभी विद्युत्-धारा प्रवाहित होने लगती है। रास्ते भर शारदा थकी होने का बहाना करके अांखें बन्द किए गाड़ी में पड़ी रही । और घर आकर भी तत्काल सोने को चली गई। पर नींद उसे रात भर नहीं आई। प्रतिक्षण जुगनू के जलता हुए हाथ का स्पर्श, हिंस्र नेत्रों की लाल-लाल ज्वाला, लड़खड़ाती वाणी में उसका उन्मत्त प्रणय-निवेदन रह-रहकर उसे खींच रहा था। कभी वह दर्द से चीख-सी उठती । कभी बिस्तर पर तड़पने लगती। कभी वह क्रुद्ध भाव से उठकर बैठ जाती । परन्तु भीतर ही भीतर उसके कौमार्य और यौवन में संघर्ष चल रहा था । यौवन जग रहा था और कौमार्य को गर्दन पकड़कर शारदा के शरीर और मन' से निकाल बाहर करने का यत्न कर रहा था। अब तक का उसका शैशव-साहचर्य उसके नेत्रों में मोह पैदा कर रहा था। परन्तु यौवन गुपचुप हंसकर नये और अज्ञात संकेत कर रहा था। वह चाहती थी कि उसकी अोर से अांखें फेर ले । वह चाहती थी कि अपने चिरसहचर शैशव को अंक में भर ले । परन्तु अब तो यौवन उसके अंग में ऊधम मचा रहा था और उसे काबू में रखना उसके बूते की बात न रह गई थी। ४७ बुलाकीदास गर्ल्स हायर सैकण्डरी स्कूल का वार्षिकोत्सव खूब धूमधाम से मनाया जा रहा था। मिसेज़ डेविड ने सारा प्रदर्शन अपने आदर्शों पर किया था । अंग्रेज़ भारत से चले गए पर भारत में जो अंग्रेजी मनोवृत्ति छोड़ गए हैं, मिसेज़ डेविड उसकी जीती-जागती तस्वीर हैं। वे चाहती हैं, भारतीय और यूरोपियन संस्कृतियों को मिलाकर एक नई संस्कृति को भारत में जन्म दिया