बगुला के पंख १६७ जाए। इसे वे नये-पुराने का मेल कहती हैं । वे भारतीय महिला की भांति साड़ी पहनती हैं, परन्तु अंग्रेज़ी बोलती हैं । हिन्दुस्तानी भाषा कल्चर्ड भाषा नहीं है । यद्यपि वे उर्दू बखूबी बोल लेती हैं। तेलगू भी वे जानती थीं पर उसे वे भूल चुकी हैं । उसे बोलने की उन्हें यहां कभी ज़रूरत ही नहीं पड़ती। वे धनी घरानों की ऊंची श्रेणी की महिलाओं पर भक्ति-भाव रखती और उनसे सम्पर्क बनाए रखती हैं । श्रीमती बुलाकीदास यद्यपि शुद्ध वैष्णवपन्थी भारतीय महिला हैं, वे अधिक शिक्षिता नहीं हैं, उनके आदर्श और रहन-सहन सम्पूर्ण भारतीय हैं, परन्तु उन्होंने मिसेज़ डेविड को अपने इस स्कूल की प्रिंसिपल बना रखा है । मिसेज़ डेविड ने अपने बुद्धिमानी, चतुराई और खुश-अखलाकी से श्रीमती बुलाकीदास को जेब में डाल रखा है । वे मिसेज़ डेविड से बहुत खुश हैं। उनकी किसी बात में वे दखल नहीं देतीं । श्रीमती बुलाकीदास उदार महिला हैं। वे चाहती हैं, नई पौध की लड़कियां खूब अच्छी तरह नये युग के नये जीवन को अपनाएं, इसमें हर्ज क्या है । पुराने जमाने का दमघोंटू घरेलू वातावरण उन्हें पसन्द नहीं है । उनके विचारों में जो कोर-कसर रह गई थी उसे मिसेज़ डेविड ने पूरा कर दिया है। स्कूल का पूरा कम्पाउण्ड रंग-बिरंगी झंडियों से भली भांति सजाया गया है। बिजली का 'स्वागतम्' लगा है । शहर के गण्यमान्य जनों को, खासकर भूतपूर्व और वर्तमान छात्राओं के अभिभावकों को, निमंत्रण-पत्र दिए गए हैं। सजावट में अंग्रेज़ी फूल-पौधे भी हैं, और केले के स्तम्भ और मंगल-कलश भी । कार्यारम्भ साढ़े छः बजे से प्रारम्भ होना है । मोटर पर मोटर आ रही है। आज श्रीमती बुलाकीदास ने आसमानी साड़ी पहनी है। वे मिसेज़ डेविड के साथ खड़ी हंस-हंसकर अतिथियों का सत्कार-स्वागत कर रही हैं । भद्र महिलाएं आती जा रही हैं। साड़ी और सलवारों की एक चलती-फिरती नुमाइश हो रही है । हवा में सैंट, इत्र और फूलों की गन्ध भरी है। सफेद खद्दर की वर्दी पर गांधी- टोपी लगाए चपरासी लोग अपने-अपने कामों में मुस्तैद हैं । कुछ लड़कियां स्वयं- सेविकाएं भी हैं। उन्होंने अपने परिधान में तिरंगा अपनाया है । इनमें से अनेक सुन्दर छात्राएं गेट पर मेहमानों का स्वागत कर रही हैं । कुछ उन्हें उपयुक्त स्थानों पर विठा रही हैं । यह व्यवस्था मिसेज़ डेविड ने की है। गेट पर आने- वालों का तांता लगा है।
पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१६९
दिखावट