पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१७०

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बगुला के पंख समारोह के प्रमुख अतिथि मुंशी जगनपरसाद अभी नहीं आए हैं। प्रमुख लोगों को हमेशा ही कुछ लेट आना चाहिए । उनके लिए सब लोगों को प्रतीक्षा करनी आवश्यक है । यही परिपाटी है । यही उपयुक्त भी है । इसमें प्रमुख जनों की प्रमुखता कायम रहती है । मिसेज़ डेविड बारम्बार घड़ी देख रही हैं। और श्रीमती बुलाकीदास बारम्बार गेट पर आनेवाली प्रत्येक मोटर को भांप रही हैं । देर होती जा रही है। सब लोग आ चुके हैं, पर मुंशी अभी नहीं पाए हैं। लाला बुलाकीदास हर पांच मिनट पर गेट का चक्कर लगा पाते हैं। अन्ततः मुंशी जगनपरसाद की सवारी आई। लाला बुलाकीदास ने पहले ही अपनी कार उनको लाने भेज दी थी। अब लाला बुलाकीदास लपककर आगे बढ़े। उनके पीछे मिसेज़ डेविड और श्रीमती बुलोकीदास, हाथों में भारी-भारी फूलमालाएं लिए । मुंशी को फूल- मालाएं पहनाई गईं,बैंड ने 'जन मन गण अधिनायक' गान किया। कायदे के मुताबिक मुंशी को पहले एक सज्जित कक्ष में ले जा बिठाया गया। चायपान' की यहां ठाठदार व्यवस्था थी। लाला बुलाकीदास और मिसेज़ डेविड अन्य प्रवन्ध करने तथा अतिथियों का सत्कार करने चले गए। रह गईं श्रीमती बुलाकीदास जुगनू की चाकरी में, जो अपनी सम्पूर्ण माधुरी का रस, मुस्कान की चांदनी और सुषमा का सौरभ चाय' में उंडेलकर जुगनू को पिलाने लगीं। मोती बींधने का नवाब का संकेत जुगनू भूला न था । इस समय उसे श्रीमती को अच्छी तरह निहारने का अवसर मिल गया था । श्रीमती बुलाकीदास ने चाय बनाकर मुस्कान की मिश्री घोलकर प्याला बढ़ाया, नयनों में कटाक्ष ढालकर कहा, 'पीजिए।' जुगनू ने कहा, 'आप यह क्या तकल्लुफ कर रही हैं, बैठिए आप । एक प्याला आप भी पीजिए । मैं बताता हूं।' 'नहीं, नहीं, मैं चाय नहीं पीती।' 'केवल पिलाती हैं ? यह न होगा।' जुगनू ने केटली की ओर हाथ बढ़ाया। 'रहने दीजिए, मैं चाय पीती ही नहीं।' 'तो यह ज़रा-सी दालमोठ चखिए, सोहन हलुआ खाइए।' 'नहीं, इस समय नहीं।' श्रीमती बुलाकीदास छोकरी की तरह शर्मा रही थीं। और जुगनू का साहस बढ़ रहा था। उसकी नज़र उनके भरे हुए वक्ष पर थी, जहां उज्ज्वल मोतियों की माला निरन्तर आघात कर रही थी। जुगनू ने .