बगुला के पंख ४ शोभाराम की पत्नी का नाम पद्मादेवी था। पद्मादेवी जैसी सुन्दरी थी, वैसी ही विदुषी स्त्री थी। पंजाब से उसने बी० ए० पास किया था और हिन्दी में प्रभाकर परीक्षा भी दी थी। वह बहुत खुशमिज़ाज, फुर्तीली और सुघड़ गृहिणी थी। उसे संगीत का भी शौक था। एक संगीत-शिक्षक उसे सितार सिखाने आता था। विवाह हुए अब पांचवां साल बीत रहा था, परंतु अभी कोई संतान नहीं हुई थी। परन्तु इस ओर उसका कोई ध्यान भी न था। न शोभाराम ही की इधर प्रवृत्ति थी । उसका कद लम्बा, शरीर छरहरा, और रंग कदली-स्तम्भ के समान गोरा था। आंखें बड़ी-बड़ी, होंठ पतले और दांतों की बत्तीसी अतिशय सुन्दर- सुडौल थी। आयु उसकी अभी छब्बीस ही बरस की थी। उसका स्वस्थ, भरा हुआ, लचकदार शरीर ऐसा था कि जब वह चलती थी तो प्रतीत होता था कि यौवन छलक रहा हो। · पांच बज चुके थे, परन्तु शोभाराम अभी तक भी दफ्तर से नहीं लौटे थे। जुगनू काफी देर आरामदेह पलंग पर पैर पसारकर सो चुका था। अब वह एक सोफे पर बैठा सिगरेट पी और दीवारों पर लगी तस्वीरें देख रहा था। पद्मा तीन-चार मासिक पत्रिकाओं को लेकर वहां आई । मासिक पत्र उसके सामने टेबुल पर रखकर उसने कहा, 'उनके आने में तो बहुत देर हो रही है । आप चाय पी लीजिए। पद्मादेवी को देखकर जुगनू की आंखें चकाचौंध हो गईं। वह सिगरेट फेंककर एक झटके के साथ उठ खड़ा हुआ। ऐसा रूप उसने कभी देखा न था, ऐसा निस्संकोच व्यवहार उसके लिए सर्वथा अनभ्यस्त था । पद्मा को देखकर वह एक प्रकार से घबरा गया। बड़ी कठिनाई से उसने केवल इतना ही कहा, 'नहीं, अभी ऐसी जल्दी नहीं है । भाई साहब को आ जाने दीजिए।' 'वह तो कभी-कभी बड़ी देर में आते हैं।' तो क्या हरज है, आ जाने दीजिए।' पद्मा ने एक नज़र जुगनू को देखा, वह स्वस्थ तरुण तो था पर उसके संकोच और व्यवहार में कुछ ऐसा दैन्य' था जो पद्मा को कुछ असाधारण-सा लगा। पर उसने इस बात पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। घर में उसके पति के मित्र
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