पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१७२

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१७० बगुला के पंख मीठी मुस्कान और आनन्दमयी अमल-धवल दृष्टि अब कहां थी। वह अब भी भीता-चकिता हरिणी के समान शंकिता और व्यथिता-सी जैसे अर्धस्वप्निल अवस्था में थी। उसे इस समय इस अवस्था में देख मिसेज़ डेविड और श्रीमती बुलाकीदास परेशान थीं। मिसेज़ डेविड ने बहुत ही परेशान होकर हाथ मलते हुए कहा, 'आखिर बात क्या है मिस शारदा, तुम्हें हुअा क्या है ? तुम्हारा तो चेहरा ही एकदम बदल गया । क्या तुम बीमार हो ?' 'मेरी तबियत ठीक नहीं है मैडम, मैं नृत्य नहीं कर सकूँगी।' 'तब तो आज का सारा प्रोग्राम ही चौपट हो जाएगा डियर शारदा, इस बात को तो सोचो।' 'मुझे अफसोस है मैडम, शारदा ने स्वप्निल-सी हालत में कहा, 'मुझे जान पड़ता है कि नृत्य करते-करते ही गिर पड़गी।' 'लेकिन क्यों मेरी प्यारी, आफ्टर पाल, यह भी तो सोचो कि इस जलसे की सफलता का सारा ही दारोमदार तुम्हारे ही नृत्य पर है। प्राचीन भारतीय भावधारा का ऐसा सुन्दर और अद्भुत प्रदर्शन करने की सामर्थ्य तुम्हारे अभिनय में ही तो है । प्रोह मिस शारदा ! भारतीय इतिहास से नाट्यकला का मिला- जुला प्रदर्शन कितना प्रभावशाली होगा ! कितने लोग इसके लिए उत्सुक हैं ! सारी दिल्ली की नाक यहां तुम्हारी इन्तज़ारी कर रही है।' 'लेकिन मुझे तो नहीं मालूम पड़ता कि मैं सफल हो जाऊंगी। मेरा खयाल है, आप यह काम किसी दूसरी लड़की को दे दीजिए।' 'प्रो, नो, नो, माई डालिंग, मैं तो जहर खाकर जान दे दूंगी। किसीको मुंह दिखाने लायक न रहूंगी।' 'आपका इतना आग्रह है तो लाचारी है। परन्तु मैं यदि असफल रहूं तो मुझे दोष न दीजिएगा।' 'सब तुमसे जैलसी का अनुभव करेंगी, शारदा तुम वण्डरफुल हो । फार हैवेन्स सेक, हौसला रखो।' 'मैडम, अब आप मुझे थोड़ा विश्राम का अवसर दें।' 'दैट्स राइट, दैट्स राइट । अभी तुम्हारे पास पूरा डेढ़ घंटा है। तब तक हम छोटे-बड़े सब प्रोग्राम खत्म कर लेंगे । तुम इत्मीनान से आराम करो।' इतना कहकर मिसेज़ डेविड संतुष्ट होकर चली गईं।