पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१७३

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बगुला के पंख संतुलित और परिपक्व भावनाओंवाली स्त्री, भले ही वह चाहे जिस आयु की हो, उसमें एक आत्मविश्वास होता ही है। खासकर जिन लड़कियों का विकास बचपन ही में सुविधा और परितुष्टि के वातावरण में होता है और जिन्हें बचपन में माता-पिता मानव-प्रकृति तथा उससे होनेवाली परिस्थितियों तथा समस्याओं के समझने में मदद देते रहते हैं, उनमें आयु की परिपक्वता के साथ, समझदारी के साथ-साथ ही सहिष्णुता, दया और साहस का ज्ञान हो जाता है । आगे चलकर उनमें अपने को तथा औरों को, जो उनके संपर्क में आए, समझने की नैसर्गिक शक्ति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी लड़कियां वयस्क होने पर अपने विचारों पर दृढ़ चरित्र से संतुलित और शांत रहती हैं । अपने चारों ओर के संसार से वे एक प्रकार का अनुकूल समझौता कर लेती हैं । और इस कारण वे अपने जीवन में संतुष्ट और प्रफुल्ल रहती हैं । ऐसी लड़कियों में यदि धैर्य और आत्म- विश्वास भी हुआ तो उनका अच्छा चरित्र-गठन हो जाता है। परन्तु जिन लड़कियों को आत्मविश्वास प्रयत्न करके प्राप्त करना पड़ता है, वह बचपन के स्वाभाविक विकास की देन के रूप में नहीं मिलता है-उनमें यदि अात्मविश्वास की कमी रह जाती है तो उसका प्रभाव उनकी शारीरिक और मानसिक गठन पर पड़ता है। वे प्रायः भीरु स्वभाव की बन जाती हैं, और जब भी कोई अप्रत्याशित उत्तेजनामूलक प्रसंग उनके सम्मुख पाता है तो वे घबरा जाती हैं, उनका दिल धड़कने लगता है, शरीर में पसीना आ जाता है, वाणी हकला जाती है, श्वास की गति तेज़ हो जाती है । ऐसी लड़कियां बात-बात में भय करने लगती हैं । वे जानती हैं कि उनका भय अकारण है, पर उनकी कमज़ोर इच्छाशक्ति और असंतुलित मनःस्थिति कावू से बाहर हो जाती है। और यदि ऐसे प्रसंग वारम्बार आएं तो उनका जीवन ही भयावह बन जाता है । और वे बहुधा हिस्टीरिया जैसे स्नायविक रोगों का शिकार हो जाती हैं । बहुधा ऐसा होता है कि जो लड़की अधिक विचारशील और बुद्धिमती होती है, वही इस विपत्ति में पड़ती है। ऐसी लड़कियां यदि घटनावश अथवा यत्नपूर्वक अपनी स्नायु-दुर्बलता के मूल कारणों को अपने से दूर उठा फेंकती हैं और जिन -