पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१८१

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बगुला के पंख १७६ दी जानी चाहिए, कि छठी का दूध याद आ जाए उसे ।' 'तुम क्या कर सकते हो उसका । पैसेवाला आदमी है, तुम्हारी धौंस में नहीं आएगा। 'कहिए तो कल ही बीच बाज़ार जूते लगवा दूं।' 'इससे क्या लाभ होगा ?' 'तो जिससे लाभ हो, वही बात बताइए । भगवान की कसम यह मोटे पेट- वाला कांग्रेस के मुकाबिले खड़ा रहा तो मैं तो किसीको मुंह नहीं दिखा सकूँगा।' 'लेकिन तुम करोगे क्या ? यह तो बतायो ।' 'देखिए साहब, आप हैं शरीफ आदमी, लेकिन मैं तो जैसे को तैसा हूं। शरीफों के लिए शरीफ ! और लुच्चों के लिए लुच्चा ! फिर यह आपका जाती सवाल नहीं है, कांग्रेस की प्रतिष्ठा का सवाल है। बस, वह सीधी राह नहीं काबू पर चढ़ा तो उसे मैं हलाल ही करके छोडूंगा।' 'लेकिन भाई, तुम करना क्या चाहते हो, पहले यह तो कहो।' 'सबसे पहले तो मैं उससे मिलकर मुंह-दर-मुंह बात करना चाहता हूं, बाद में सीधी उंगली से घी नहीं निकला तो फिर मैं हूं और वह 'खैर, तुम उससे मिलकर तो बात करो।' 'क्या आप उससे कुछ नहीं कहना चाहते ?' 'नहीं, मैं नहीं चाहता कि मेरा नाम भी उसके आगे आए।' 'तो आप खातिर जमा रखिए, मैं तो कांग्रेस के नाम पर उससे बात करूंगा।' 'अच्छी बात है, करो । और अपना नतीजा मुझे बताओ।' 'ठीक है । मैं आज ही मिल लूंगा।' ,