पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१८२

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१८० बगुला के पंख ५३ मुहल्ले की सभा में लाला लोगों ने लाला फकीरचन्द के धूमधाम से जन- संघ की ओर से खड़े होने का समर्थन किया। मालाएं भी पहनाईं। जोगीराम ने खूब ऊंच-नीच लालाओं को समझाया। उसके कथन का सारांश था कि जनसंघ की छत्रछाया में हिन्दू, हिन्दुस्तान और हिन्दूधर्म फल-फूल सकता है। कांग्रेस में मुसलमान घुसे हैं । कांग्रेसी सरकार एकदम फेल हो गई। कांग्रेस ने पाकिस्तान बनाकर हिन्दुओं को मरवाया । हिन्दूधर्म की लुटिया डुबो दी। हिन्दूधर्म और गो-रक्षा करने के लिए हमें जनसंघ में ही जाना चाहिए । कांग्रेस की सरकार ने टैक्स पर टैक्स लगाकर सब व्यापारियों के नाक में दम कर रखा है । टके के आदमी अफसर वने बैठे हैं और हमें उनकी जी-हुजूरी करनी पड़ती है। रुपया हमारा है, देश हमारा है, पर सरकार हमारी नहीं है । इस सरकार को हटाना होगा। अपने आदमी को पार्लियामैंट में भेजना होगा। आदि-आदि । लाला लोग बहुत खुश हुए । तालियां पीटीं। एक-दो ने परमिट दिलाने की सुविधाओं की गारंटी चाही, किसी-किसीने अपने नाते-रिश्ते के बी० ए० फेल लड़कों के लिए नौकरी चाही। सबका जवाब जोगीराम ने दिया, 'जब लाला फकीरचन्द पार्लियामैंट की कुर्सी पर बैठेंगे तो फिर देखना जैसे तुम्हीं वहां बैठे हुए हो।' धकेल-पकेलकर लाला फकीरचन्द को भी जोगीराम ने कुछ कहने को खड़ा किया। दोनों मोटे-मोटे हाथ जोड़कर दीनभाव से लाला फकीरचन्द ने अपनी नालायकी का इजहार किया, 'सब व्यापारियों में एका होना चाहिए। यह नहीं कि असली घी के और वनस्पति घी के व्यापारी आपस में लड़ें। भई, अपना- अपना माल बेचो । अपना-अपना धन्धा करो। जनसंघ किसीकी आड़ नहीं है । बस एका करो।' बार-बार हाथ जोड़े लाला फकीरचन्द ने तालियों की गड़गड़ाहट में आसन ग्रहण किया। अपनी पहली स्पीच की सफलता पर मन ही मन खुश होते लाला घर लौटे । अब पार्लियामैंट में स्पीच देने का चाव उनके मन को गुदगुदा रहा था।