पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२१०

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२०८ बगुला के पंख !' गरीबों की ब्याह-शादी में काम आएं । लाला फकीरचन्द ने कहा, 'पांच हज़ार रुपया इस काम के लिए पंचायत की नज़र करता हूं, और लाला फकीरचन्द ने तुरन्त ही चैक चौधरी के हवाले कर दिया। तालियों की गड़गड़ाहट से लाला फकीरचन्द का अभिनन्दन हुआ और इसीके बाद नारे बुलन्द होने लगे । चौधरी ने कहा, 'पार्लियामेंट की कुर्सी पर कौन बैठेगा? 'लाला फकीरचन्द !' 'महात्मा गांधी की !' 'जय !' 'जवाहरलाल नेहरू की !' 'जय !' 'गांधीजी के हत्यारों का !' 'नाश हो !' 'कौमी नारा?' 'वन्दे मातरम् बस, लाला लोगों की सभा खत्म हो गई। इसके बाद फूलमालाओं से लादकर लाला फकीरचन्द का धूमधाम से जुलूस निकला। आगे-आगे बैंड, और पीछे-पीछे विद्यासागर और उसकी चाण्डाल-चौकड़ी। उनमें रलेमिले लाला लोग । मुहल्ले-भर में लाला फकीरचन्द के राग अलापे जाने लगे। किसीको इस बात का ध्यान न रहा कि अभी उस दिन यही लाला फकीरचन्द कांग्रेसियों को गाली दे रहे थे, और जनसंघ के उम्मीदवार थे। जोगीराम की बड़ी भद्द हुई। जनसंघियों की भी सभा धर्मशाला में अगले दिन हुई। परन्तु प्रथम तो लाला दीवानचन्द के प्रताप से सभा में बहुत कम लोग पाए । लड़के-वच्चों का शोर-शराबा होता रहा। और जब सभा चुप हुई तो विद्यासागर के गुर्गों ने वह होहुल्लड़ मचाया कि सभा में मार-पीट की नौवत आ गई, और पुलिस को सभा भंग करनी पड़ी। दूसरे दिन लाला लोगों के दस्तखती पोस्टर चिपका दिए गए।- गांधीजी के हत्यारों का मुंह काला ! सभा में गाली-गुफ्ता और मार-पीट । पुलिस को आना पड़ा। ब-१३