बगुला के पंख २०६ देवी अनेकरूपा है। गौरी, दुर्गा, चण्डिका, काली, कराली। दिव्यरूपा गौरी भूत-भावन भोलानाथ के लिए उग्र तपस्या करती है । वामांक में विराज- मान होकर पुत्र गणेश, कार्तिकेय, नन्दी, भृगीगण आदि परिजनों पर प्रसन्नता प्रकट करती है । दुर्गा असुर-संहार करती है । चण्डिका-काली साक्षात् शिव को भूपतित कर उनके वक्ष पर चरण रख, खप्पर भर-भरकर रक्तपान करती है । कलियुग में अनेकरूपा देवी ने अनेक रूपों में शत-सहस्र-कोटि नारी-शरीर धारण किए हैं। उनमें कितनी ही सौम्यरूपा गौरी, कितनी ही असुर-संहारिणी दुर्गा, कितनी ही विकराल काली-कराली हैं । वे पति-मर्दन कर उनका रक्त-पान करती हैं । पति उनके चरण-नख पर दृष्टि रखकर जीवन-यापन करते हैं। इस अनेक- रूपा देवी को नमस्कार है। अभी तक ये घरों में बद्ध चहारदीवारी से घिरी हुई घर के द्वार बन्द करके सोम-पान, रक्त-पान, गर्जन-तर्जन करती थीं। अब कांग्रेस ने इनके घरों के द्वार मुक्त कर दिए। घरों की चहारदीवारी ढहा दी और उन्हें बीच राह सड़क पर ला खड़ा किया । बूढ़े ब्रह्मा ने गांधी का अवतार धारण कर उन्हें वरदान दिया कि वे अब स्वच्छन्द विचरण करें, प्रभातफेरी करें, देश की धुन में हज़ारों नर-नारियों के बीच गला फाड़-फाड़कर चीखें- चिल्लाएं। जेल जाएं, फांसी चढ़े, मरें, किन्तु अमर रहें । पति पर से उनका असाध्य एकाधिकार हटा दिया गया। साक्षात् स्वामी कार्तिकेय ने नेहरू चाचा के रूप में जन्म लेकर उन्हें तलाक का वरदान दे दिया। अब वे अंधेरे ही भोर के तड़के प्रभातफेरी के नाम पर जहां जी चाहे जाएं, जो जी चाहे करें। पति महोदय बम्भोलानाथ की महामाया के प्रसाद से मीठी नींद निर्विघ्न सोते रहेंगे। चाय-पानी से स्वयं निबट लेंगे। बच्चों को शीशी का दूध पिला होटल में भव्य भोज्य का प्रसाद ले दफ्तर में जा अफसर की लाल-पीली आंखों की रंगत देख-देखकर कागज़ काले करते रहेंगे। पत्नीरूपा देवी से शक-संदेह-प्रश्न, वाद-विवाद न कर सकेंगे। करेंगे तो तड़ाक-फड़ाक तलाक । अदल-बदल ! अर्थात् उसकी इसकी बगल में, इसकी उसकी बगल में ! जय हो, जय हो सभ्यता भवानी की, नई दुनिया की, नई रोशनी की !!! नई रोशनी की अधिष्ठात्री-प्रभातफेरी, .
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