बगुला के पंख २१ तलाश में था, इसके लिए उसने कमेटी से अनुमति भी ले ली थी, पर उसे मन के योग्य आदमी नहीं मिल पाता था । जुगनू को उसने अपनी समझ में उपयुक्त ही समझकर यह काम सौंपा था । पहले दिन ही जुगनू को दफ्तर पहुंचाकर और उसे काम-काज समझाकर जब शोभाराम वहां से चला गया तो फिर लौटकर उसका आना शाम को ही हुआ । परन्तु जब वह शाम को आया तो उसने देखा कि दफ्तर की कायापलट हो गई है । कमरे और सहन की एकदम सफाई हो गई है । सब कागज-पत्र करीने से रखे हैं, अखबारों की फाइलें तारीखवार ठीक कर ली गई हैं और मेज़-कुर्सियां, आलमारी भी अपनी पुरानी जगहों से हटाकर करीने से लगा दी गई हैं । यह सब देखकर शोभाराम प्रसन्न हो गया। उसने जुगनू की पीठ ठोककर कहा, 'शाबाश मुंशी, भई तुम तो बड़े ही काम के आदमी हो । तुमने तो आज दफ्तर को दुलहिन की भांति सजा डाला।' जुगनू ने कहा, 'भाई साहब, ये बातें तो होती ही रहेंगी । तुम बैठो, मैं अभी तुम्हारे लिए चाय बना लाता हूं। बस पांच मिनट लगेंगे।' 'नहीं भाई, कष्ट मत करो। अभी मुझे बहुत काम है, पूरी डाक देखनी है।' 'सो तुम देखो, मैं अभी चाय बनाकर लाता हूं। भला यह भी कोई काम है । यह तो मरना हो गया, वाह !' शोभाराम रोकता ही रहा, पर उसने तत्काल स्टोव जलाकर चाय बनाई। शोभाराम ने चाय पीते हुए कहा, 'मुंशी, तुम तो यार आदमी हीरा हो । लो एक प्याला तुम भी पित्रो। और हां, ज़रा डाक तैयार करने में मेरी मदद करो। देखो, इन चिट्ठियों में जो कल-परसों की आई हैं, उन्हें छांट डालो । कई दिन से देख ही नहीं पाया। आज मैं डाक का काम खतम करके ही उलूंगा। कल वकिंग कमेटी की मीटिंग है । पलक मारने की फुर्सत नहीं मिलेगी।' वह काम में जुट गया और जुगनू ने भी सब चिट्टियां छांट डालीं। फालतू कागज़ात फाड़ डाले गए। ज़रूरी कागजात फाइल किए गए। रजिस्टर में चढ़ाए गए। शोभाराम ने कहा, 'मुंशी, ज़रा इन चिट्ठियों को रजिस्टर में तो चढ़ा दो। और ये पते भी देख-देखकर लिख डालो।' जुगनू ने झंपते हुए कहा, 'भाई साहब, बात यह है कि लिखना मेरा बहुत ही खराब है।' यह बात उसने अंग्रेजी में कही। सुनकर शोभाराम हंस दिया । वास्तव में
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