२३२ वगुला के पंख पागल की तरह उसे देखती खड़ी रही, फिर वह धाड़ मारकर पछाड़ खाकर भूमि पर गिर गई। आवाज़ सुनकर पहाड़ो नौकर दौड़ा हुआ बाहर आया। दोनों ने मिलकर पद्मा को बिछौने पर जा सुलाया । पद्मा बेहोश पड़ी रही। परन्तु थोड़ी ही देर में उसकी बेहोशी दूर हुई । पहले उसने अांखें फाड़कर जुगनू की ओर देखा, फिर वह मुंह फेरकर फफक-फफककर रो उठी। उसकी आंखों से गंगा-जमुना की धार बह चली, अनवरत धार, जिसका न आदि था न अंत । जुगनू अब भी एक शब्द न बोल सका। वह घटना समझ गया था, और एकाध बात सांत्वना की कहना चाह रहा था। पर उसके हलक से बात फूटती ही न थी । वह चुपचाप पद्मा का माथा सहलाने लगा। बहुत देर तक सब कोई योंही चुपचाप नीरव रहे । अन्त में जुगनू ने नौकर की ओर देखकर कहा, 'कब? 'कल तीसरे पहर ।' फिर उसने कुछ ठहरकर कहा- 'बीबीजी ने तीन दिन से पानी की बूद भी नहीं ली है, उन्हें कुछ खिला- पिला दीजिए। जुगनू ने भर्राए स्वर से कहा, 'घर में कुछ है ?' 'दूध है । मैं अभी गर्म किए लाता हूं।' नौकर जल्दी ही एक प्याले में दूध ले आया। जुगनू ने कहा, 'पद्मारानी, जिसे जाना था वह चला गया, जिन्हें रहना है वे रहेंगे । जीवन भी एक विकट संग्राम है। इसमें हमें हारना नहीं है, जीतना है । लो, ज़रा-सा दूध पी लो ।' परन्तु पद्मा का रोना नहीं रुक रहा था। वह मुंह में कपड़ा ठूसकर बिलख रही थी। जुगनू ने कहा, 'इस तरह दुखी होने से क्या मरा आदमी आ जाएगा ?' फिर उसने सहमते हुए एक खास लहजे में कहा, 'जानेवाला चला गया, और आनेवाला आ गया। लो, दूध पी लो।' एक बार क्षण भर को पद्मा ने सूजी हुई और लाल-लाल अांखों से जुगनू की ओर देखा। कुछ कहने के लिए उसके होंठ हिले। परन्तु इसी समय जुगनू ने उसे हाथों का सहारा देकर ज़रा ऊपर उठाया और दूध का प्याला उसके मुंह से लगाते हुए कहा, 'पद्मा, तुम जगन' को मरा ही देखो जो दूध न पियो।' दूध पी लिया । वह उठकर बैठ गई। आंसू उसने पोंछ डाले। पमा ने
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