पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२५१

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बगुला के पंख २४६ नपे-तुले शब्दों में केवल इस ढंग से बातें की जैसे एक साधारण मुलाकाती से की जाती हैं । इसके बाद भी कई दिनों तक जुगनू पद्मादेवी से नहीं मिला। अब वह रात-दिन यही सोचता रहता था कि कैसे इस बला से पिण्ड छूटे । हकीकत तो यह थी कि पद्मा में अब उसकी कोई दिलचस्पी नहीं रह गई थी और वह अब अपने को बड़ा आदमी समझने लगा था। इसी समय अचानक ही एक नया प्रसंग आ खड़ा हुआ । दक्षिण अफ्रीका को एक ट्रेड कमीशन भारत सरकार भेज रही थी, किसी खास उद्देश्य से । कुछ लोगों ने जुगनू को उसका सदस्य बना दिया। असल बात यह थी कि लाला फकीरचन्द ने इस्पात ढालने की और अखबारी कागज़ बनाने की एक फैक्टरी खोलने की योजना बनाई था । वे चाहते थे कि उसके कुछ शेअर दक्षिण अफ्रीका में बिक जाएं । वहां उनके गुर्गे मौजूद थे। कुछ ट्रेड एजेंट भी थे। और वहां के भारत-स्थित ट्रेड कमिश्नर से उन्होंने गुप्त समझौता कर लिया था । लाला फकीरचन्द ने जुगनू को फंसा लिया था। उन्होंने उसे बता दिया था कि आपपर बेहद विश्वास के कारण मैं आपको वहां भेज रहा हूं। दोनों कम्पनियों का मूल- धन बाईस करोड़ रुपये था, जिसमें आधे शेअर सरकारी थे। इस प्रकार यह अर्धसरकारी कम्पनी थी। फकीरचन्द का प्रस्ताव था कि जुगनू दक्षिण अफ्रीका में पचास लाख के शेअर बेंच पाए। इसके बदले उसे डेढ़ लाख के शेअर बोनस के तौर पर दे दिए जाएंगे तथा उसे दोनों कम्पनियों का डाइरेक्टर बना लिया जाएगा। लाला फकीरचन्द ने उसे बता दिया था, यह काम ज्यादा कठिन नहीं है। सिर्फ विश्वास होने के कारण उसे ही भेजा जा रहा है । जुगनू ने स्वीकार कर लिया। और जिस दिन सुबह जुगनू दक्षिण अफ्रीका को उड़ रहा था उसकी पहली रात को वह काफी रात बीत जाने पर पद्मा के मकान पर आ पहुंचा। उसने पद्मा को दिल्ली आने के लिए काफी लानत-मलामत दी। उसे वहां नहीं आना चाहिए था। यह वात दोनों के हक में, दोनों की प्रतिष्ठा के विपरीत है । यही बात उसने बारम्बार कही। पद्मा मसूरी से यह ठानकर आई थी कि वह मुंशी से दो टूक बात करेगी। या तो वह उससे विवाह करे या वह उससे कतई सम्बन्ध त्याग दे । फिर उसका जो हो सो हो। परन्तु जब उसने सुना कि वह सुबह ही विदेश को उड़ रहा है, उससे कुछ