पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२१० बगुला के पंख भी कहते-सुनते न बन पड़ा। जुगनू की डांट-फटकार सुनकर वह मूक-मौन रोती रही, रोती रही। उस रुदन में जो वेदना थी, जो आवेदन-प्रतिवेदन था, वह जुगनू जैसे मूढ़ पुरुष से भी छिपा न रहा । वह भी द्रवित हो गया । और उसने पद्मा को अपने अंक में भींच अपने में समा लिया और उसके मूक-मौन रुदन का उत्तर मूकं चुम्बनों से देना प्रारम्भ कर दिया । पद्मा की वह रात जुगनू के अंक में कटी । और सुबह जब वह विदा हो रहा था, बहुत-सी आशाएं, संदेश और सुखद कल्पनाएं वह इस बदनसीब, असहाय औरत पर बिखेर चुका था । ८० तीन महीने दक्षिण अफ्रीका का भ्रमण करके जुगनू जब लौटा तो उसकी जेब में उसकी कमाई के ग्यारह लाख रुपये थे। उसने पचास लाख रुपये की रकम लाला फकीरचन्द की जेब में डाली थी। इसके अतिरिक्त इन तीन महीनों में वह व्यापार के उन सब गुप्त हथकंडों को भी सीख गया था जिनकी बदौलत ये करोड़पति सेठिया लोग करोड़ों कमाया करते हैं । वह मिनिस्टरों, राजदूतों, अर्थशास्त्रियों और बड़ी-बड़ी व्यापारी फर्मों की भयानक पोलपट्टी से भी वाकिफ हो गया था। फकीरचन्द के लिए जुगनू दुधारू गाय' था और वे उस कीमती हथियार को हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने पांच लाख रुपया खर्च करके उसके लिए वाणिज्यमन्त्री की कुर्सी तैयार कर रखी थी। जब स्वागत की धूमधाम खतम हो गई, तो लाला फकीरचन्द ने उसको एक दावत इम्पीरियल में दी। अब लाला फकीरचन्द भी घपचू आदमी न थे। एम० पी० थे, और करोड़ों से खेल रहे थे। अब जुगनू की कृपादृष्टि से नहीं, सहयोग से दोनों का लाभ हो सकता था। इसलिए उन्होंने उसे दावत दी थी। पर दावत में एक और व्यक्ति भी उपस्थित था । यह एक ज्योतिषी था, जो तांत्रिक और सिद्ध प्रसिद्ध था। फकीरचन्द ने उसकी वहुत-बहुत तारीफ करके जुगनू से