पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२६

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२४ बगुला के पंख खाना , उसने किसी तरह एक शेर लिख दिया । शारदा ने कहा, 'दस्तखत भी कीजिए।' उसने दस्तखत कर दिए, 'मुंशी जगनपरसाद ।' 'तारीख।' जुगनू ने तारीख डालकर कापी उसके हाथ में दे दी। शारदा दौड़कर गई—एक बड़ी कापी उठा लाई। उसने कहा, 'पूरी गज़ल लिख दीजिए।' जुगनू घबरा रहा था । वह वास्तव में शुद्ध नहीं लिख सकता था। इसी समय' डाक्टर खन्ना ने कहा, 'जा, जा शारदा, इन्हें तंग न कर । देख, लगा कि नहीं।' शारदा भीतर चली गई और तुरन्त ही वापस आकर कहा, 'जी, खाना लग गया, आइए।' सब लोग उठकर भोजन पर बैठे । मजिस्ट्रेट जोगेन्द्रसिंह ने ज़रा ऊंचे स्वर से कहा, 'यहां आइए मुंशीजी, मेरे पास बैठिए।' यद्यपि जुगनू का संकोच बहुत कम हो गया था, पर फिर भी एक झिझक तो बाकी थी ही । वह झिझकते हुए चुपचाप जोगेन्द्रसिंह के पास जा बैठा, उसकी बगल में बैठे श्री मल्होत्रा । उन्होंने धीरे से झुककर उसके कान में कहा, 'आप कायस्थ हैं न मुंशी जगनपरसाद ?' जगनपरसाद नाम से उन्होंने यह अनुमान किया था । सो अच्छा ही किया कि इस तौर पर प्रश्न किया, नहीं तो यदि पूछा जाता कि आप कौन जात हैं, तो निस्सन्देह जुगनू घबरा जाता । अब भी वह घबरा तो गया, उसने कहा, 'जी हां, जी हां, कायस्थ । 'कौन, भटनागर या श्रीवास्तव ?' 'जी, जी, श्रीवास्तव ।' उसने सूखते हुए होंठों पर जीभ फेरी और फिर मुंह फेरकर मजिस्ट्रेट से बातचीत का रुख किया । मजिस्ट्रेट ने कहा, 'कभी-कभी इतवार को चले आया कीजिए मुंशीजी, मुझे शायरी का वेहद शौक है। पर वक्त मिलता ही नहीं, फिर भी जो तुकबन्दी करता हूं, आपको सुनाऊंगा।' 'मैं अवश्य' आऊंगा । इसी इतवार को।' 'अवश्य आइए । भई खन्ना, सुना तुमने ? मुंशी आ रहे हैं इसी इतवार को