२६२ बगुला के पंख . शत्रु भी हैं। और वाणिज्यमन्त्री होना जोखिम से परिपूर्ण है । वह लाला फकीरचन्द को तो करोड़ों का देशी-विदेशी सौदों में लाभ दे ही रहा था, और भी कार्रवाइयां उसकी चल रही थीं। बम्बई और कलकत्ता के दो-चार करोड़पति अब अपनी कूट वाणिज्यनीति से जुगनू की कृपादृष्टि प्राप्त कर करोड़ों रुपये कमा चुके थे। आफिस के कागज़ात में बहुत त्रुटियां होती जा रही थीं। उसके सहायकों ने तथा पी० ए० ने अनेक बार उसे चेतावनी दी, पर उसने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। अन्ततः लोकसभा में उसपर वज्रपात हुआ। वह ठीक-ठीक जवाब न दे सका, और उसके कामों की छानबीन के लिए जांच-आयोग स्थापित हो गया । लाला फकीरचन्द और कलकत्ता के सेठ सुहागचन्द पर झूठी कम्पनियों के खाते, जाली शेअर बेचने और करोड़ों रुपया गबन करने के मुकदमे उठ खड़े हुए। अनेक बैंकों से जाली चैक द्वारा रुपया ठगने के भी मुकदमे चले । लाला फकीरचन्द को गिरफ्तार कर लिया गया। जुगनू की फूंक सरक गई। पद्मा ने उसे इन प्रपंचों से दूर रखने की बहुत चेष्टा की थी, पर उसने उसकी बात नहीं मानी थी, उसका अपमान किया था। प्रश्न उठा कि जुगनू के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव उठाया जाए। परन्तु जांच-आयोग के निर्णय तक यह प्रश्न अध्यक्ष ने रोक दिया। पर सारे शहर में लाला फकीरचन्द की गिरफ्तारी की चर्चा फैल गई। परन्तु लाला फकीरचन्द अपने मामले में पूरे चाक-चौबन्द थे। उनके यहां तलाशी में एक भी कागज़ उनके विरुद्ध नहीं मिला । उनके बहीखातों पर आयोग ने कब्जा कर लिया था, परन्तु बहीखाते ही वनिया लोग गलत लिखेंगे, तो लाखों का ब्लैक कैसे करेंगे। अतः जो कुछ भी गड़बड़ी का प्रमाण था, वह जुगनू के कार्यालय में। एक बार तो जुगनू घबराया । फिर उसने अपने एक मात्र मित्र नवाब से परामर्श लिया। दोनों मित्रों ने गूढ़ परामर्श करके सब बातें तय कर लीं। जांच-आयोग की कार्यवाही प्रारम्भ हो गई। आयोग के सदस्यों ने सर्वसम्मति से मिलकर कागज-पत्रों को काबू में करके सीलमुहर बन्द करके अपनी कस्टडी में रख लिया । परन्तु जुगनू दृढ़ था, शान्त और गम्भीर था। लोग उसकी शान्त और निरुद्वेग वृत्ति को देखकर आश्चर्यचकित थे। कुछ कहते थे, वह दोषी है ; कुछ कहते थे, निर्दोष है । जुगनू इस सम्बन्ध में न हितैषियों से
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