सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बगुला के पंख २६५ 'जुगनू कान है ?' 'वह क्या मोटर में दुल्हा बने बैठे हैं।' 'वे तेरे भाई हैं ? 'नहीं तो क्या ! मेरे जुगनू भैया हैं ।' 'तूने उन्हें कितने दिन में देखा है ?' 'बहुत दिन में । वे घर से लड़ाई करके परदेश चले गए थे। तब से उनका कोई पता ही न लगा, न चिट्ठी-पत्री आई । आज अचानक दीख पड़े।' 'तूने ठीक पहचान लिया ?' 'वाह साहब, ये मेरे बड़े भैया हैं।' 'क्या सगे भाई हैं ?' 'जी, मां-जाए भाई हैं।' 'तू मेरे साथ प्रा ।' परशुराम उसे अपनी कोठरी में ले गए, उन्होंने उसे भीतर धकेलकर कोठरी में बाहर से ताला लगा दिया। ताला लगाते हुए कहा, 'चुपचाप बैठना, बदमाश ! शोर किया तो जूते पड़ेंगे।' 'सरकार, मेरा कसूर तो बताइए।' 'कहता हूं, चुप बैठ । तुझे इनाम मिलेगा।' कोठरी में ताला लगाकर परशुराम तेजी से डाक्टर खन्ना को खोजने लगा। स्त्रियां द्वाराचार की तैयारियां कर रही थीं। बाजों, शहनाइयों और आदमियों का शोर बहुत हो रहा था । जुगनू पत्थर की मूरत बना मोटर में बैठा था, उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे अभी-अभी उसका भाई आकर उससे लिपट जाएगा। उसका मन हो रहा था कि कूद पड़े, आत्मघात कर ले या कहीं भाग जाए। डाक्टर खन्ना का हाथ पकड़कर परशुराम एक ओर ले गया। उसने कहा, 'ज़रा स्त्रियों से कह दीजिए, द्वाराचार की रस्म रोक दें।' 'मामला क्या है परशुराम ?' 'बहुत गम्भीर मामला है, डाक्टर साहब ! स्त्रियों से बात करके झटपट मेरे साथ आइए।'