पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२६८

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घसीटा की बात सुनकर डाक्टर सन्न रह गए। उनके शरीर में खून की गति रुक गई। परशुराम ने कहा, 'धीरज धरिए डाक्टर साहब, ईश्वर का धन्यवाद है, शारदा की इज़्ज़त बच गई।' 'पर मेरी इज़्ज़त तो धूल में मिल गई।' 'देखिए, जो होना था वह हो गया। इस भंगी के बच्चे पर मेरा पहले ही शक था, मैं जानता था कि यह एक शैतान आदमी है । पर किसे मालूम था कि यह भंगी है।' 'तो अब क्या किया जाए ?' 'जरा फकीरचन्द को बुला लाइए यहां।' 'इसपर नज़र रखो, निकलने न पाए।' 'नहीं।' परशुराम फकीरचन्द को वहां बुला लाया। सब हकीकत सुन-सुनकर लाला फकीरचन्द मुंह बाए रह गए। उन्होंने खन्ना के पैरों पर सिर रखकर कहा, 'डाक्टर साहब, मेरा कसूर इतना भारी है कि उसकी कोई सज़ा नहीं ; पर भगवान जानते हैं, मैं यह नहीं जानता था कि वह भंगी है।' डाक्टर ने भर्राए गले से कहा, 'तुमने उसे अपना भांजा क्यों बताया था ?' 'मेरी अक्ल मारी गई थी। मैंने तो समझा था परदेशी आदमी है, भले घर का लड़का होगा। मुझपर उसके अहसान थे, मैं यह भयानक भूल कर बैठा ।' 'रोने-धोने से अब क्या होगा । यह कहो किया क्या जाए !' लाला फकीरचन्द प्रत्युत्पन्नमति थे । हौसले के आदमी थे। बोले, 'डाक्टर साहब, हौसला करो। ये भाई यहां खड़े हैं । शारदा के मास्टर ही हैं न ?' 'हां, इनका नाम परशुराम है।' 'अविवाहित हैं ?' 'हां।' 'तो भाई परशुराम, तुम मेरी और डाक्टर साहब की इज़्ज़त रख लो । शारदा को भी बचा लो । अब तुम्ही पाटे पर बैठो।' लाला फकीरचन्द ने कन्धे से दुपट्टा उतारकर परशुराम के कन्धे पर डाल दिया। और कहा, 'तुम मेरे