२६ बगुला के पंख कर्मठता से काम लिया । वह आफिस का भी पूरा काम संभालता था और शोभाराम की सेवा-सुश्रूषा में भी जान लड़ाए रहता था। इससे पद्मा और शोभाराम दोनों ही उसके प्रति कृतज्ञ रहने लगे। शोभाराम बार-बार पद्मादेवी को जुगनू की असुविधाओं का ध्यान रखने को कहता । पद्मा स्वयं भी यत्न से उसकी सब आवश्यकताओं की पूर्ति करती थी। यहां रहते और आफिस में काम करते अब उसे छः मास से भी अधिक बीत चुके थे । आफिस के काम को वह बहुत कुछ समझ गया था। लिखने-पढ़ने का भी उसने अभ्यास बढ़ा लिया था। उसके अंग्रेजी बोलने के ढंग और सैकड़ों शेर कण्ठ पर चढ़े रहने से उसकी योग्यता के सम्बन्ध में प्रत्येक व्यक्ति को धोखा हो जाता था। यह कोई नहीं जान' सकता था कि वह एक अपढ़, असंस्कृत, अछूत जाति का व्यक्ति है । अच्छा भोजन और मानसिक उत्तेजना के निरन्तर वातावरण में उसका स्वास्थ्य भी अधिक अच्छा हो गया था और उसका रंग भी निखर आया था। इससे वह सुन्दर, स्वस्थ, सलोना युवक तो था ही, हंसमुख और फुर्तीला होने के कारण भी वह सर्वप्रिय' बन गया था। उसके बहुत-से मित्र बन गए थे । प्रत्येक छोटे-बड़े को वह अपना मित्र बना लेता था। कांग्रेस का दफ्तर एक अजीब-सा मुसाफिरखाना था। वहां एक से बढ़कर एक उलझन को लेकर स्त्री-पुरुष पाते, अपनी-अपनी कहते और जुगनू जैसे भी सम्भव होता सबकी मनोकामनाओं की पूर्ति करता । अपनी शक्ति भर वह किसी बात में कसर न छोड़ता । इससे लोग उसके प्रति कृतज्ञता और आदर का भाव प्रकट करने लगे। परन्तु इस समय दो वस्तुएं उसके आकर्षण का केन्द्र थीं। एक पद्मादेवी, जिसके प्रति वह दिन-दिन आकर्षित होता जाता था ; दूसरी मिस शारदा, जो स्वयं उसकी ओर आकृष्ट हो रही थी। जब-तब वह डाक्टर खन्ना के मकान पर जाकर देर तक मिस शारदा से गप्पें लड़ाता रहता । वह बहुधा उसे इधर- उधर के झूठे-सच्चे किस्से सुनाता, उसे सुनाने ही के लिए उसने कुछ अच्छे फिल्मी गीतों का अभ्यास किया, जिन्हें अवसर पाते ही एकान्त में वह शारदा को सुनाता । सुनकर शारदा अभिभूत हो जाती। अभी उसने यौवन की दहलीज़ में पांव रखा ही था । यौवन की उद्दाम वासना उसमें अभी जागृत नहीं हुई थी। पर एक अज्ञात प्रेरक शक्ति उसके मन की कली को खिला रही थी और यौवन के आनन्द का आभास उसे इस मुंशी की सोहबत में मिलता था। मुंशी
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