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पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२९

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बगुला के पंख २७. को देखते ही जैसे उसका यौवन उकसने लगता था । यद्यपि उसे इन सब यौन भावनाओं का ज्ञान न था, परन्तु एक अनिर्वचनीय सुखानुभूति वह मुंशी को अपने निकट देखते ही अनुभव करने लगती थी। धीरे-धीरे मुंशी को और अधिक निकट से देखने की उसकी लालसा बढ़ने लगी। उसके पाने में कुछ देर होती तो वह बेचैन-सी हो जाती। उसके चले जाने पर अपने भीतर कुछ सूना- सूना-सा अनुभव करती। पहले वह उसकी कविता सुनकर, गाना सुनकर हंसती थी ; अब हंसती न थी, अपने शरीर में एक सिहरन, एक थरथराहट अनुभव करती थी। जुगनू तरुण था, स्वस्थ था, असंस्कृत था, स्त्री का उपभोग कर चुका था, सो शारदा के अज्ञात-यौवन-भाव को वह लक्ष्य करता था। पहले ही दिन से, जब से उसने उसे देखा था, वह उसके प्रति आकृष्ट हो गया था। अब धीरे-धीरे वह अधिक निस्संकोच होता गया। अब शारदा को देखते ही वासना का एक मन्द ज्वर-सा उसे चढ़ जाता, उसे ऐसा प्रतीत होता जैसे उसे कुछ. कम दिखाई दे रहा है। उसकी वाणी लड़खड़ाती और कभी-कभी तो वह इतना असंयत हो जाता कि उसे अंकपाश में जकड़ने की अपनी दुर्दान्त वासना को बड़ी ही कठिनाई से दमन कर पाता। फिर भी उसने अभी तक उसका स्पर्श नहीं किया था। यद्यपि शारदा अभी भी इस सम्बन्ध में असावधान थी, वह बहुधा उससे सटकर बैठ जाती। अपनी देह को उसपर गिरा देती। परन्तु जुगनू अपनी ओर से उसे छूने का साहस न कर सका था। पद्मादेवी की बात बिलकुल दूसरी थी। वह जैसी सुन्दरी थी, वैसी ही विदुषी भी थी। वह विवाहिता स्त्री थी और अपनी गृहस्थी की संचालिका थीं। पत्नी और गृहिणी दोनों ही गुण उसमें थे। परन्तु वह पति-सुख से वंचिता थी। शोभाराम सदा का रोगी, दुबला-पतला, कार्य-भार-व्यस्त, कुछ रूख-रूखा-सा अादमी था। तिसपर गांधी के संयम और ब्रह्मचर्य की भावना का उसपर मानसिक प्रभाव था। इससे वह पद्मा जैसी सुन्दरी, स्वस्थ पत्नी का यथोचित उपभोग न कर सकता था। पद्मा सच्चरित्र स्त्री अवश्य थी, पर वासना की भूख उसे थी। वह भूख उसकी आंखों में जुगनू ने यहां आने के कुछ दिन बाद ही जान ली थी। ऐसी भूख वह उस अंग्रेज़ अफसर की पत्नी की आंखों में देख चुका था, जिसने उसके यौवन को मौन' आमन्त्रण देकर उसे आत्मसमर्पण कर दिया था। पद्मादेवी का ध्यान करते या उसे देखते ही उसे उसी अंग्रेज़ रमणी -