२८ बगुला के पंख का स्मरण हो आता । उसकी नग्न देह-यष्टि उसकी आंखों में साकार हो उठती और वह असंयत होकर सोचने लगता, 'क्या पद्मा भी मुझे अात्मसमर्पण कर देगी ? उसका उपभोग भी क्या मैं कर सकूँगा ?' उसका मन धिक्कारता कि मित्र और आश्रयदाता की विवाहिता पत्नी की ओर ऐसी कुभावना उसे नहीं रखनी चाहिए, परन्तु थोड़ी देर बाद वह फिर उन्हीं विचारों में डूब जाता। धीरे-धीरे ये विचार उसके मन में दृढ़बद्ध होने लगे । और अब वह प्यासी अांखों से पद्मादेवी को देखने लगा। वह उसे भाभी कहकर पुकारता था और बहुधा उसे उसके साथ एकान्त में रहने और मिलने का अवसर मिलता रहता था। निरन्तर एकसाथ एक घर में रहने के कारण उनमें अब संकोच भी कम हो गया था। कभी-कभी विनोद-वार्ता चलती और पद्मा हंस देती। अथवा वह भी विनोद-वाक्य कह बैठती। इसका जुगनू के उत्तेजित मन पर बुरा प्रभाव होता । वह बहुधा असंयत हो उठता । रह-रहकर उसका मन होता कि वह पद्मा पर बलात्कार करे । परन्तु पद्मा का मन शान्त और शुद्ध था। उसका हास्य-विनोद निर्दोष था। फिर भी स्त्री किसी अचिन्त्य शक्ति से प्यासी अांखों को पहचान लेती है । पद्मा भी जुगनू की प्यासी आंखों को पहचान गई। कभी-कभी जुगनू की आंखों में वह प्यास देख उसका मुंह लाल हो जाता और वह नीची नज़र करके वहां से चल देती। ऐसे अवसरों के बाद एकाध दिन तक वह जुगनू के सामने आती ही नहीं थी। परन्तु यह एकान्तता अन्ततः निभती न थी। उसे उसके सामने आना पड़ता ही था । बात करनी ही पड़ती थी। शोभाराम की बीमारी के कारण पद्मादेवी और जुगनू का एकान्त- मिलन और बढ़ गया। उसपर आफिस के काम का भी भार था, परन्तु वह जल्द से जल्द वहां का काम खतम करके घर आ जाता, शोभाराम को आफिस के सब समाचार बताता, परामर्श लेता, फिर उसकी सेवा-सुश्रूषा में लग जाता। बहुधा उसे एकान्त में पद्मादेवी से इस विषय पर परामर्श-बातचीत करनी पड़ती, बहुधा एकान्त रात्रि में अकेले उस घर में उसे पद्मा की शोभाराम के लिए पथ्य- औषध तैयार करने में सहायता करनी पड़ती। ऐसी अवस्था में कभी-कभार दोनों का अंग स्पर्श हो जाता, तो दोनों के शरीर में एक सिहरन दौड़ जाती । और दोनों ही बाहर संकोच से किन्तु भीतर एक दुर्दम्य लालसा से आन्दोलित और अब,
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