बगुला के पंख आंशिक रूप में यह चोरी-छिपे की बात है, परन्तु इसका अनैतिक मूल्य' नगण्य है । समाज के संगठन का रूप ही कुछ ऐसा है। अलबत्ता विवाहिता स्त्रियां भी आवश्यकता होने पर ऐसे यौन सम्बन्ध अपनी स्वस्थ काम-बुभुक्षा-निवारण के लिए अन्य पुरुष से कर लेती हैं। समाज ने उन्हें ऐसी सुविधाएं नहीं दी हैं जैसी पुरुषों को प्राप्त हैं, पर चोरी की सुविधाएं चोर हज़ार रीति से निकाल लेता है । परन्तु विवाहिता पत्नी की बात तो एक ओर रही, किसी भी स्त्री का किसी भी हालत में विवाहित पति को छोड़कर अन्य पुरुष से यौन सम्पर्क घोर अनैतिक है । किसी भी रूप में समाज उसे स्वीकार नहीं कर सकता। स्त्री पर सतीत्व का जो बोझ है, वही इसमें सबसे बड़ा बाधक है। स्त्रियों को इस बाधा से बड़ा भारी द्वन्द्व करना पड़ता है। प्रायः ही उन्हें उपयुक्त समय पर स्वस्थ यौन आहार नहीं मिलता । काम-संतुलन का पति-पत्नी के चुनाव में कोई स्थान ही नहीं है। बहुधा पति स्वस्थ होने पर भी पत्नी-सहवास में अपनी ही काम-बुभुक्षा तृप्त करते हैं, पत्नी को इस सम्बन्ध में प्राथमिकता नहीं देते । घरों में जैसे पत्नियां पति के तृप्त होकर भोजन कर लेने के बाद उसकी जूठी थालियों में बचा हुआ उच्छिष्ट भोजन करती हैं, वैसे ही पत्नियां पति के मनमाने तरीके पर तृप्त हो लेने के बाद अपनी काम-बुभुक्षा को तृप्त कर लेती हैं। परन्तु इनमें बहुत-सी भूखी ही रह जाती हैं । बहुधा तीव्र लालसा में भूखी रह जाना अहितकर परिणाम लाता है-शारीरिक भी, सामाजिक भी। केवल इसी विषम परि- स्थिति ने स्त्रियों की सामाजिक और शारीरिक विकृतियों को इतना अधिक बढ़ा दिया है कि जिसे हम भयंकर कह सकते हैं। फिर भी समाज के नियम और बन्धन वैसे ही हैं । स्वस्थ पत्नी काम-भूख से तड़पती रहे, वह पति के अतिरिक्त किसी स्वस्थ पुरुष से यौन सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकती । यही समाज-नीति और समाज-मर्यादा है। परन्तु प्राकृतिक उद्वेग अपने काम अवश्य करते हैं। तीव्र भूख में निषिद्ध भोजन असंयत होकर लोग करते हैं । परन्तु ऐसा करने से पूर्व उन्हें एक अन्तर्द्वन्द्व का सामना तो करना ही पड़ता है। ऐसा ही अन्तर्द्वन्द्व अत्यन्त प्रच्छन्न' रूप में पद्मादेवी के हृदय में पनप रहा था जिसे जुगनू की प्यासी अांखें निरन्तर उत्तेजना दे रही थीं । जुगनू भी यह जान गया था । एक प्रकार की हिंसक प्रसन्नता, वैसी ही जैसी शिकार को फंसा देखकर किसी हिंस्र पशु को होती है, जुगनू को
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