पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/३३

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बगुला के पंख आह्लादित-उत्तेजित कर रही थी। उसी आह्लाद-उत्तेजना से प्रेरित होकर वह अधिकाधिक उत्साह से शोभाराम की सेवा करता, और पद्मादेवी के समक्ष अतिशय' कोमल, भावुक और विनम्र बनता चला जा रहा था। उसके भीतर के भेड़िये ने भेड़ की खाल ओढ़ ली थी और वह पद्मा को अपना शिकार समझ चुका था। हरियाली तीज स्त्रियों का मनभावना त्यौहार है । सुहागिन स्त्रियां इस दिन नवीन शृंगार करती हैं। मिठाई-पकवान बनाती हैं। इधर दो-चार दिन से शोभाराम का स्वास्थ्य भी कुछ ठीक था। उसने हठपूर्वक पद्मा से मिठाई-पकवान बनाने और शृंगार करने का आग्रह किया था। सुबह ही से पद्मादेवी अनेक प्रकार के मिठाई-पकवान बनाती रही और अब वह नहा-धोकर नवीन नाइलोन की नई साड़ी और साटन की चुस्त चोली पहनकर सज-धजकर शृङ्गार कर रही है । चोटी में उसने फूल गूंथे हैं, हाथों में मेंहदी रचाई है। अपने सभी आभूषण उसने अंग पर धारण किए हैं और अब वह नख-शिख से शृंगार करके शोभाराम की शैया के पास आई है । शोभाराम प्यासी अांखों से पद्मा को देख रहा है। पद्मादेवी की आयु छब्बीस बरस की थी। रंग उसका गोरा था, जिसमें से खून टपका पड़ता था। उसके लावण्य' में स्वास्थ्य' की कोमलता का एक अद्भुत मिश्रण था । उसकी आंखें काली और बड़ी-बड़ी थीं। कोये उज्ज्वल-श्वेत थे। उन अांखों में तेज और आकांक्षा दोनों ही कूट-कूटकर भरी थीं। अनुराग और आग्रह जैसे उनमें से झांकता था । पद्मादेवी के बाल गहरे काले तथा आपाद- चुम्बी थे। वे मुलायम और चूंघरवाले भी थे। भौंहें पतली और कमान के समान सुबुक थीं । कान छोटे, गर्दन' सुराहीदार और उरोज उन्नत थे। शरीर उसका छरहरा था । यह पोशाक उसके अंग पर खूब खिल रही थी। शोभाराम बड़ी देर तक पत्नी के रूप को निहारता रहा। उसके सूखे और तेजहीन फीकै मुखमण्डल पर एक अानन्द की लहर दौड़ गई। उसने कहा, 'पद्मारानी, ज़रा मुझे उठाकर कुर्सी पर बिठाओ, और वह खिड़की खोल दो।'