३८ बगुला के पंख अलबम दिखाऊं । तुम मुझे सलाह दो कि अब उसमें मैं कौन-कौन तस्वीरें लगाऊं । क्या तुम फोटोग्राफी भी जानते हो मुंशी ?' 'नहीं, कुछ ऐसी ज़्यादा नहीं।' 'झूठ बोल रहे हो । ज़रूर जानते हो । आज मैंने पूरी एक रील बरबाद की है । आपो देखो-पसन्द करो । मैंने टामी के छः फोटो लिए हैं।' वह बराण्डे की ओर मुड़ी। जुगनू भी उसके पीछे-पीछे चला । परन्तु इस समय उसका मन वहां से भागने को हो रहा था। कोई दैवी शक्ति उसे धिक्कार दे रही थी कि वह एक पवित्र कुमारिका पर कुदृष्टि रखता है । वह एक संभ्रांत पिता के साथ विश्वासघात कर रहा है, जिसने उसके साथ अपनी पुत्री को मिलने की स्वतन्त्रता दे रखी थी। बराण्डे में काफी रोशनी हो रही थी। वहां दो-तीन कुर्सियां रखी थीं। उन्हीं में से एक पर मुंशी को बिठाकर शारदा अपना अलबम और नये चित्र ले आई। परन्तु इसी समय मास्टर परशुराम आ गया। उसे देखते ही शारदा ने प्रसन्न मुद्रा से कहा, 'खूब आए मास्टर साहब । ये मुंशी बैठे हैं, आइए, इनसे मिलिए। इनकी गज़ल सुनिए और अपनी कविता इन्हें सुनाइए । अभी इन्होंने कुछ नये शेर लिखे हैं।' उसने पुस्तक में से वह कागज़ निकालकर कवि के हाथ में रख दिया। परशुराम कालेज में फाइनल एम० ए० का विद्यार्थी था। शारदादेवी की ट्यूशन करता था । शारदा का कविता की ओर रुझान देखकर उसने उसे काव्यशास्त्र पढ़ाना भी आरम्भ कर दिया था। उससे शारदा ने मुंशी की चर्चा की थी। उसे देखकर और उसका परिचय' सुनकर परशुराम ने जुगनू से हाथ मिलाया और जो कागज़ शारदा ने उसे दिया था, वह मुंशी को देते हुए कहा, 'मैं तो उर्दू नहीं पढ़ सकता, आप सुनाइए।' परन्तु वे गज़लें बड़ी हलकी थीं, एक हद तक उन्हें अश्लील भी कहा जा सकता था । वे वास्तव में जुगनू की अपनी रचना भी नहीं थीं। कहीं से नकल कर लाया था। उन्हें पढ़ने में उसे संकोच होने लगा। उसने फीकी हंसी हंसकर कहा, 'कुछ ज्यादा अच्छी नहीं हैं । यों ही लिख लाया हूं।' 'खैर, सुनाइए तो।' 'अब इस वक्त मूड नहीं है, माफ कीजिए।'
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