पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/५३

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बगुला के पंख 'सब खैरसल्ला है हुजूर, चलिए ऊपर तशरीफ ले चलिए।' उसने लखनवी अदा से झुककर लाला को जीने की ओर चलने का इशारा किया। कोठे पर से गाने की आवाज़ आ रही थी। लाला फकीरचन्द ने कहा, 'ऊपर कौन है नवाब ?' 'कोई एक रईस साहबजादे हैं । उनके साथ एक दोस्त हैं । नये आसामी हैं, सरकार। सरदार जोगेन्द्रसिंह ज़रा संकोच में पड़े । लाला फकीरचन्द ने कहा, 'फिक मत कीजिए हुजूर, अभी सबका पत्ता काटता हूं। आइए।' तीनों ऊपर गए। कमरा कुछ हिन्दुस्तानी, कुछ अंग्रेज़ी ढंग पर सजा था। फर्श पर दूध-सी सफेद चांदनी बिछी थी। मसनद पर दो लौंडे बैठे पान कचर रहे थे। उम्र होगी बीस-बाईस बरस की । सामने मोतीबाई बैठी कोई गजल गा रही थी। हलकी आसमानी साड़ी, उसपर गहरे किरमिची रंग की चुस्त अंगिया, मोती-सा रंग, बड़ी-बड़ी आंखें, चांदी-सा माथा, और छरहरा बदन, नर्म गोरी कलाइयों में काला लच्छा, सादगी और माधुर्य की प्रतिमा-सी। लालाजी को देखते ही मोतीबाई ने गाना बन्द कर ज़रा झुककर आदाब बजाया । तबलची और सारंगिये ने भी झुककर सलाम किया। लाला फकीरचन्द बेतकल्लुफी से मसनद पर लुढ़क गए । सरदार साहब जरा रुबाब से बैठे । जुगनू सिकुड़कर उनके पीछे, संकोच और घबराहट से परेशान-सा। 'शुरू करो मोतीवाई, कोई ठाठदार चीज़ होनी चाहिए। ये हैं मेरे दोस्त सरदार जोगेन्द्रसिंह मजिस्ट्रेट साहब बहादुर और ये हैं मुंशी-मुंशीजी।' लाला फकीरचन्द जुगनू का नाम भूल गए। मोती ने एक बार फिर झुककर तसलीमात की और एक ठुमरी का आलाप लिया। तबले पर थाप पड़ी, सारंगी ने सिसकारी ली। वातावरण कंपायमान- सा हो गया। अभी स्थायी चल रही थी कि लाला फकीरचन्द ने एक सौ रुपये का नोट निकालकर मोतीबाई के ऊपर फेंक दिया। और उसके दो ही मिनट बाद दूसरा।