पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/६३

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बगुला के पंख की व्यवस्था करती है, यही नहीं, उसके गुरु की भांति उसे लिखना-पढ़ना भी सिखाती है, यह वह देख रहा था। फिर भी उसके मन में बहुधा ऐसी दुर्दम्य वासना उठ खड़ी होती थी कि वह उसे अपने अंक में समेट ले । उसे लेकर कहीं भाग जाए। परन्तु पद्मादेवी का मन केवल चंचल होकर रह जाता था। उसे अधिक से अधिक निकट से देखने का सुख-भाव उसके मन में उदित था, इससे अधिक विकार अभी नहीं बढ़ा था। १७ जुगनू की तबियत कुछ खराब थी। उस दिन वह घर से बाहर नहीं निकला । शोभाराम आज जल्दी ही दफ्तर चले गए थे। कई मीटिंगें आज उन्हें अटेंड करनी थीं । पद्मादेवी खाने-पीने से जल्दी ही फारिग हो गई थी और अब वह एकान्त में बैठी कोई उपन्यास पढ़ रही थी। परन्तु उपन्यास में उसका मन नहीं लग रहा था। बहुत बातों का विचार उसके मन में उठता था। एक विचित्र प्रकार की चंचलता और उद्वेग वह अपने भीतर अनुभव कर रही थी। घर में आज इस समय अकेले पद्मादेवी और जुगनू थे। बारंबार उसका मन जुगनू की ओर जाता था और हर बार वह अपने विचार को उधर से बलपूर्वक खींचती और पुस्तक में मन लगाने की चेष्टा करती। परन्तु कोई दुर्दम्य आकांक्षा जैसे उसे हर बार खींचकर अपनी ओर ले जा रही थी। हकीकत तो यह थी कि इस समय उसका मन बहुत ही चंचल हो रहा था। सूने कमरे में घड़ी की टिक-टिक अधिक जोर की सुनाई दे रही थी। कभी उसकी नज़र कमरे में दीवार पर टंगी तस्वीरों पर, कभी पुस्तक पर पड़ती, पर हर वस्तु में उसकी आंखें जुगनू का स्वस्थ यौवन' और अभिलाषाओं से भरा-पूरा चेहरा देख रही थीं, जहां अांखों में वासना की ज्वलन्त भूख प्रकट हो रही थी। वह बड़ी देर तक बैठी इन्हीं सब विचारों के ताने-बाने बुनती रही । यद्यपि सर्दी के दिन थे, पर उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे गर्मो में उसका दम घुट रहा है । किसी अज्ञात प्रेरणावश एक-दो बार अनजाने ही उसके होंठ फड़के और जुगनू