पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/६४

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६२ बगुला के पंख का नाम उनसे फूट पड़ा। अन्ततः वह पुस्तक सोफे पर एक ओर फेंककर उठ खड़ी हुई और आईने के सामने खड़ी होकर अपने रूप को देखने लगी। ऐसा प्रतीत होता था कि अपने ही रूप पर उसका मोह हो गया है। अपनी कंटीली आंखों में मंजे हुए काजल की रेखा देखकर उसके होंठों पर एक मुस्कान खेल गई । परन्तु दूसरे ही क्षण एक लम्बी सांस भी उसकी छाती से निकली। ज़रा आईने के सामने और खड़ी रहकर उसने अपने बाल ठीक किए, एक नज़र कसी हुई चोली पर डाली एक आग्रह की प्रवृत्ति अचानक ही उसके मन में जागरित हुई । वह इतनी प्रबल थी कि उसकी सारी चेतना एकबारगी ही उसके वशीभूत हो उठी और वह किसी अज्ञात शक्ति से खिंची हुई चलकर जुगनू के कमरे में जा पहुंची। जुगनू चारपाई पर पड़ा किसी पत्रिका के पन्ने उलट रहा था । पद्मा- देवी को देखते ही वह लपककर झट उठ खड़ा हुआ। वह पद्मादेवी के स्वागत के कुछ शब्द कहना ही चाह रहा था कि उसकी दृष्टि पद्मा के मुख पर गई। वह भावातिरेक से लाल हो रहा था और इस समय उसकी आंखों से एक ऐसी चमक निकल रही थी कि जिसने जुगनू का सोया हुआ सम्पूर्ण यौवन जगा दिया। वह अभिभूत-सा चुपचाप नीचे को देखता हुआ खड़ा रहा । पद्मादेवी की ओर आंख भरकर देखने और कुछ कहने का जैसे उसका साहस ही खो गया। उसका हृदय ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। लगभग ऐसी ही दशा पद्मादेवी की भी हो रही थी। सूने-से अकेले घर में इस एकान्त मिलन से उसकी छाती भी ज़ोर-जोर से धड़क रही थी, संकोच और चंचलता दोनों ही में उसका मन उलझ रहा था। पद्मादेवी की मनोदशा जुगनू से छिपी न रही। उसकी प्रवृत्ति अत्यन्त भड़क उठी और आंखों से जैसे आग की ज्वाला निकलने लगी। पर उसके मुंह से बोली न निकली । केवल उसके सूखे होंठ फड़ककर रह गए। पद्मादेवी ही ने संयत होकर कहा, 'अब तबियत कैसी है आपकी ?' 'अच्छी है, जी हां, अच्छी ही है।' 'तो मौसम तो बहुत सुहावना है, ज़रा टहल आइए, मन बहल जाएगा।'