पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/६८

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बगुला के पंख . सकते ; नहीं जा सकते।' इतना कहकर पद्मादेवी ने दोनों हाथों से अपना मुंह ढांप लिया। तब जुगनू ने एकदम उनके पैरों के पास धरती में बैठकर कहा, 'यहां रहूंगा तो मैं पागल हो जाऊंगा पद्मारानी, आपको देखने में अपार सुख है और अथाह दुःख है । फिर, मैं यहां रहूं किसलिए' जुगनू एकदम चुप हो गया और मुंह उठाकर पद्मा की ओर देखने लगा। पद्मा ने हांफते-हांफते कहा, 'वह सब मैं नहीं जानती, पर तुम मुझे छोड़कर जा नहीं सकते । ऐसा हो नहीं सकता।' पद्मा अभिभूत-सी होकर जुगनू के शरीर पर झुक गई। 'तो क्या मेरी प्यारी पद्मा, तुम भी मुझे चाहती हो ? मुझे प्यार करती हो?' जुगनू ने पद्मा के दोनों हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया। पद्मादेवी का सर्वांग कांपने लगा। उसने उठने की चेष्टा की, परन्तु जुगनू ने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपने अंक में समेट लिया। उसने कहा, 'जब से तुम्हें देखा है, तभी से पागल हो गया हूं। काश, शब्दों में शक्ति होती तो तुम्हें समझाता कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं। किन्तु 'मैं पागलों का सा आचरण कर रहा हूं। लेकिन मैं तुम्हें प्यार करता हूं, प्यारी पद्मा, मेरी रानी।' पद्मादेवी ने बड़ी कठिनाई से उसे दोनों हाथों से पीछे को ढकेला और चुम्बन के लिए बढ़े पाते हुए मुख को उसके सिर के बाल पकड़कर रोका और अपना सिर पीछे को झुका लिया। परन्तु उसके मुंह से बात नहीं फूटी, एक भी शब्द वह बोल न सकी, उसकी जीभ जैसे तालू से सट गई । उसमें जुगनू के कामोद्दीप्त अंगारे के समान मुख को देखने की भी सामर्थ्य न थी। उसने दोनों अांखें बन्द कर लीं। 'नहीं, नहीं, कुछ मत कहो, कुछ मत कहो । मुझे ही कहने दो।' उसने मत्त सांड की भांति लम्बे-लम्बे उच्छ्वास लेते हुए कहा । वह उठ खड़ा हुआ और पद्मा को अच्छी तरह अपने अंकपाश में जकड़ लेने के लिए दैत्य की भांति दोनों हाथ पसारकर आगे बढ़ा । परन्तु इसी बीच में पद्मा किसी अदृश्य शक्ति से प्रेरित होकर उठी और कुर्सियों से टकराती हुई कमरे से बाहर की ओर को भागी । जुगनू भी उसे पकड़ने के लिए पीछे भागा, पर टेबल से टकराकर गिर पड़ा। अपने कमरे में जाकर पद्मादेवी ने भीतर से सिटकनी चढ़ा ली और एक-