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पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/९८

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बगुला के पंख मित्रों से रहित । बस आपका शरणागत मुझे आप अपने अांचल में ढांप लीजिए । यही मेरी प्रार्थना है।' जुगनू ने ऐसी नम्रता और विनय से ये शब्द कहे कि लाला बुलाकीदास पानी-पानी हो गए। उन्होंने जुगनू के गले में हाथ डालकर आत्मीयता से कहा, 'तुम मेरे प्यारे हो, मेरी आत्मा हो। ऐसा क्यों कहते हो ? खूब लायक हो । सच पूछो तो मुझे जबर्दस्ती ही इस झमेले में फंसाया गया है । बस, समझ लो-मैं सिंदूर लगा हुआ पत्थर हूं, जिसे लोग देवता समझकर पूजा करते हैं । मुझमें न' इतनी समझ है, न शक्ति । बस, मैं तो तुम्हारे ही ग्रासरे हूं। तुम नौजवान हो, लायक हो, समझदार हो । सब कुछ तुम्हींको करना पड़ेगा भैया, मेरा तो नाम ही नाम है । मिट्टी का शेर हूं मैं भैया ।' जुगनू ने झुककर उनके पैर छुए। बड़े ही दीन भाव से कहा, 'आपके चरणों का दास हूं। आप हुक्म करते जाएंगे, मैं उसका पालन करता जाऊंगा। यों मुझे भी ज़बर्दस्ती फंसाया गया है । मैं तो मुल्क का एक अदना खिदमतगार हूं। यहां शहर की खिदमत करने का मौका मिलेगा, बस इसीसे मैंने मंजूर किया था। अब आप ही के हाथ मेरी इज़्ज़त है।' 'फिक्र न करो प्यारे, भले-बुरे में मैं तुम्हारे साथ हूं। दिल्ली शहर में कौन माई का लाल है जो मेरी बात पर हरफ लगाए । तुम डंके की चोट अपना काम करना । सब झोंक मैं संभाल लूंगा।' जुगनू की नम्रता और दीन वचनों से लाला बुलाकीदास मौन हो गए। और इस कुछ ही क्षणों की मुलाकात ने उन्हें जुगनू की जेब में डाल दिया। अभी और भी बात होती, पर इसी समय' शारदा ने अपनी कविता पढ़नी शुरू की। लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट में कविता का अभिनन्दन किया। और भी नज़्में पढ़ी गईं । लाला बुलाकीदास से भी कुछ कहने को कहा गया, पर वे तो बस खड़े होकर हाथ जोड़कर ही बैठ गए। अब जुगनू की बारी आई । वही मस्ती, वही तरन्नुम में नज्म पढ़ना और अन्त में वही पेटेण्ट वाक्य, बच्चा हूं, आपका सेवक हूं, यह मेरी नहीं कांग्रेस की इज़्ज़त है। मैं आपके लिए मर मिटूंगा। मुझे आप ही के सहयोग का सहारा है। मैं मुल्क का एक अदना खिदमतगार हूं' आदि-आदि । बार-बार तालियों की गड़गड़ाहट से जुगनू का अभिनन्दन हुआ। इसके 'मैं आपका