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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्मकथा पर यह जान कर मुझे आश्चर्य हुआ कि उजयिनी में निपुणिका मुझ से मिली थी। मैंने कुतूहल के साथ प्रश्न किया-क्या कहती है, निउनिया ! उञ्जयिनी में मुझ से मिली थी १ । 'हौ भट्ट, मैं उज्जयिनी में तुम से मिली थी। तुम उस समय शालिक के अडु पर मुझे ही खोजने गए थे ।' शर्विलक का अड्डा ! मुझे उज्जयिनी के जनाकीर्ण लोकालय में मिट्टी के दियों से सदा सुसजित वह गन्दो पान-शाला याद आ गई, अहाँ मद्यपों, छतकरों और चोरों का निवास है । वह स्त्रियों की खरीद-बिक्री का भी कारबार होता है। नगर के निचली श्रेणी के विटों, विदूषको और लम्पटों का वह अड्डा है । मुझे सन्देह था कि निपुणिको कहीं इन लोगों के जाल में न फंस गई हो, इसलिए कई दण्डधरों को साथ लेकर मैं उस नरक-कुण्ड की तलाशी लेने गया था। वह दुर्गन्ध का भण्डार है, दुराचार का श्राश्रय है, लम्पटता का अवास है । वहीं निपुण का मुझसे मिली थी ! मैंने आश्चर्य के साथ पूछा--१ वहाँ कैसे गई, निउनिया १ मैं मदपाथियों को चषक भर-भर कर मद्य दिया करती थी । इसी रूप में । ‘नहीं, मैंने बालक-वेश धारण किया था ।' "तू स्वेच्छा से गई थी, निउनिया ११ “हाँ भद्द, मैंने स्वेच्छा से केवल एक दिन के लिए नौकरी कर ली थी और वेतन लिए बिना ही दूसरे दिन भाग आई ।' मैं आश्चर्य से निपुणिका के मुंह की ओर ताकने लगा। वह हँसती हुई बोली-

  • तुम नहीं समझोगे भई, मैं बता रही हैं। फिर निपुणिका ने अपनी

कहानी इस प्रकार सुनाई–“तुम्हें जान कर आश्चर्य होगा कि यद्यपि तुम्हारी नर्तकियाँ अवरोध में रहती थीं और तुमने उनको कुल-वधुओं का सम्मान दिया था; पर वे शावि लक की दुकान का पता जनिती