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बाण भट्ट की आत्म-कथा

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बाण भट्ट को आत्म-कथा

अक्षरों में लिखा था--'अथ बाण भट्ट की आत्म-कथा लिख्यते ।'


 बाण भट्ट की अत्म-कथा ! तब तो दीदी को अमूल्य वस्तु हाथ ली है। मैं ध्यान से सारी कथा पढ़ गया । मुझे अपार आनन्द आ रहा था । इतने दिन बाद संस्कृत-साहित्य में एक अनोखी चीज प्राप्त हुई है। रात योही बीत गई । सबेरे मैं कलकत्ते को रवाना हो गया । वहाँ एक सप्ताह रुकना पड़ा। लौट कर आया, तो मालूम हुआ कि दीदी काशीवास करने चली गई हैं। किसी को कोई पता-ठिकाना नही दे गई।
 दो साल तक वह कथा योही पड़ी रही । एक दिन मैंने सोचा कि बाण भट्ट के ग्रन्थों से मिला कर देखा जाय कि कथा कितनी प्रमाणिक है। कथा में ऐसी बहुत-सी बाते थी, जो उन पुस्तकों में नहीं हैं। इनके लिए मैंने समसामयिक पुस्तक का श्राश्रय लिया और एक तरह से कथा को नए सिर से सम्पादित क्रिया । अगे जो कथा दी हुई है, वह दीदी का अनुवाद है और फुटनोट में जो पुस्तकों के इवाले दिए हुए हैं, वे मेरे हैं। कथा है। असल में महत्वपूर्ण है, टिप्पणियां तो उसकी प्रामाणिकता की सबूत हैं।
 बहुत दिनों तक दीदी का कोई समाचार नहीं मिला। मैं अब उनके दर्शन की आशा छोड़ बैठा था। एक दिन अचानक मुग़लसराय स्टेशन पर दादी के दर्शन हो गये । वे गाड़ी बदल रही थी और बहुत व्यस्त दीख रही थी । मुझे देख कर वे जरा भी प्रसन्न नहीं हुई। केवल कुली को हटकर कहती रई--'सँभाल के ले चल । तू बड़ा अलसी है !' मैंने सोचा, कुली भी आलसी है। फिर मैंने चिल्लाकर कहा---'दीदी, तुम क्या पहचानती भी नहीं, वाह रे ! | दीदी रुक गई ! बोलीं-- 'देखो, मैं बहुत दुखी हूँ। वह बिल्ली बोखा दे गई ।' 
 मैंने कहा---‘क्यों, क्या हुआ !'