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बाण भट्ट की आत्म-कथा

१६६ बाण भट्ट की आत्मकथा मन्दिरों और विहारों की सीदियों पर फिर जंगली वृकों की घुइ दौड़ होगी । शस्यश्यामला अर्यभूमि फिर से रक्त और भस्म के कीचड़ से भयंकर हो उठेगी ।-भाइयो, प्रत्यन्त दस्यु आ रहे हैं । | *किसने प्रत्यन्त । अाज तक रोक रखा था ? विषम समर-विजयी, वाह्रीक-विमर्दन, प्रत्यन्त-बाइव अज्ञात-प्रतिस्पर्द्धविकट देवपुत्र तुवर- मिलिन्द ने । देवमन्दिरों और बिहार के रक्षक, स्त्रियों और बालकों के मानदाता, ब्राह्मणों और श्रमशों के आश्रिय-भूमि देवपुत्र अाज विषम शोक-सागर म निमग्न हैं। उनकी प्राधिका कन्या को दस्युयों ने अज्ञात स्थान में पहुँचा दिया है । देवपुत्र आज मन्त्रौषधिरुद्धवीर्य कालसर्पक की भाँति अपने विप से अाप ही जल रहे हैं। कौन है, जो देवपुत्र का इस शोक सागर से उद्धार करेगा ? कौन है, जो प्रत्यन्त दस्युओं के उत्पाटन में फिर से निमित्त बनेगा ? --भाइयो, प्रत्यन्त दस्यु अा रहे हैं । “कौन है, जो देवपुत्र की कन्या का सन्धान बतायगर १ भाइयो, प्रयत्न करो, देवपुत्र की प्राधिका कन्या का मन्धान प्राप्त करो। एक बार फिर देवपुत्र की विशाल वाहिनी के सैन्य-सम्मर्द से भुवन- मएडल जीर्ण शकट के क्राड़देश की भाँति धूम्र हो उठे, गैरिक गिरि- वर्म अश्व के सुर चोद से गरि -कुहरे को छ, “मेलक (ऊँट)-सटा के समान कपिश बना दे, मदमत्त गजराजों को वाहिनी प्रत्यत्न देश को काली मदधारा से परिणत लक मृग के रामरजि के समन कबुर बना दे, महीतल अश्वमय, दिक्चक्राल कजरमय, अन्तरिक्ष यातपत्र- मय, अम्बरतल ध्वज-वनमय, मद गन्धमय और त्रिभुवन जयशब्द- मय हो उठे।–भाइयो, प्रत्यन्त दस्यु फिर आ रहे है ! “कौन है, जो श्राज यावत्त को दस्युओं के दंष्ट्रा से उद्धार करेगा १ च स्कन्द के अवतार समुद्रगुप्त नहीं हैं, जिनके धनुष-टंकार