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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की अत्मि-कथा का विक्रमानल निर्वापित हो गया है, केवल कान्यकुब्ज़ का साम्राज्य ही आज इस विनाश से आयवर्स को बचा सकता है। परन्तु देखो भट्ट, एक बार यदि दस्युञों ने गिरिवत्र्य लाँघ कर मैदान में प्रवेश किया, तो उन्हें रोकना कठिन हो जायगई । इस विषम संकट से मुक्ति पाने के एक मात्र आशा-स्थान भट्टिनी के पिता हैं । वे इस समय खिन्न और हतोत्साह हैं, स्थाण्वीश्वर के बौद्ध नरपति से असन्तुष्ट हैं और मौखरियों के गुरु भवु शर्मा के प्रभाव में हैं। मैं देखता हूँ कि तुम्हारे ही हाथ में उनको प्रसन्न करने का अस्त्र हैं। भट्टिनी को कान्यकुब्ज में उसी सम्मान के साथ रखा जायेगा, जो सम्राट की भगिना के उपयुक्त है । परन्तु उनकी प्रतिज्ञा है कि इस राजवंश के किसी भी गृह में वे आश्रय नहीं लेंगी । बोलो भट्ट, क्या उपाय है ? मैं थोड़ी देर तक अभिभूत की भाँति ताकता रहा । कुमार ने उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही फिर आरम्भ किया- तुम मौखरि-कुल राजलक्ष्मी महारानी जियश्री को जानते हो न १ मैंने फिर सिर झुकाकर स्वीकार किया। कुमार बोले-भट्टिनी उन्हीं की अतिथि रहेंगी। यह लो निमन्त्रण-पत्र ।' इतना कह कर कुमार ने चाँदी की पटोलिका में चीनांशुक से समावृत्त पत्र मेरे हाथों में रख दिया। मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना बोले- इसके बाद तुम जैसे बने, भट्टिनी को यहाँ ले आश्री । वे जो भी चाहें, उसे तुम समा के प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार कर सकते हो । तुम कल ही जा सकते हो । लौटकर तुम्हें ही पुरुष पुर जाना होगा । सब- कुछ सावधानी से और शीघ्रता के साथ करना होना । भट्ट, तुम्हें आय- वत्त की महानाश से रक्षा करनी है। तुम्हारी कोई भी असावधानी लाख-लाख निरीह जनों के सर्वनाश का कारण हो सकती है । श्राजे तुम महाराजाधिराज से मिल लो ।' कुमार ने मुझे बोलने का अवसर ही नहीं दिया, उनकी बातें ऐसी नपी-तुली, भावुकताहीन और साफ़ थीं कि मैं कुछ सोचने-विचारने का अवसर ही न पा सका। केवल विनित