२५४ बाणभट्ट की अत्मि-कथा जा रही है, वह उनके अपमान से विक्षुब्ध होकर नहीं । अधर भैरव साक्षात् शिव-रूप हैं। मैं आपकी सभा के इस निर्णय का अभिनन्दन करती हूँ कि अयं विर तिवज्र और आयुष्मती सुचरिता निर्दोष हैं । परन्तु मैं महाराजाधिराज से प्रार्थना करने के निर्णय का विरोध करती हूँ। मैं संन्यासिनी हूँ। मैंने स्वेच्छा से दुःख और क्लेश का मार्ग स्वीकार किया है । मैं मृत्यु से नहीं डरती । श्राप मेरी गर्दन उड़ा दे सकते हैं ; परन्तु सत्य कहने से मुझे नहीं रोक सकते । प्राचार्य भर्व- पाद के पत्र के फलितार्थ पर अपने विचार किया होता, तो ऐसा निर्णय नहीं करते है वह पत्र पौरुषहीनता का नग्न प्रचारक है। वह पत्र आर्यावर्त की भावी पराजय का अग्रदूत है। अापका निर्णय उसी मनोवृत्ति का पोषक है । आप कहते हैं कि उत्तरापथ के ब्राह्मण और श्रमण, वृद्ध और बालक, बेटियाँ और बहुएँ किसी प्रचण्ड नरपति- शक्ति की छाया पाए बिना नहीं बच सकतीं। श्रार्य सभासदी, उत्तर- पथ के लाख-लाख नौजवानों ने क्या कंकण-वलय धारण किया है ? क्या वे वृद्धों और बालकों, बेटियों अौर बहुश्री, देवमन्दिरों और विहारों की रक्षा के लिए अपने प्राण नहीं दे सकते १ क्या इस देश के विद्वानों में स्वतन्त्र संघटन-बुद्धि का विलोप हो गया है १ श्राचार्य भर्वपाद का पत्र पढ़कर मेरा करठ रोष और लजा से सूख ग्राता है । इस उत्तरापथ में लाख-लाग्य निरीह बहुओं और बेटियों के अपहरण और विक्रय का व्यबसाय क्या नहीं चल रहा है ? अगर देवपुत्र तवर- मिलिन्द का हृदय थोड़ा भी संवेदनशील होता, तो अाज से बहुत पहले उन्हें मूर्छित होकर गिर पड़ना था । क्या निरीह प्रजा की बेटियां उनकी नयनतारा नहीं हुआ करतीं ? क्या राजा और सेनापति की बेटियों का खो जाना ही संसार की बड़ी दुर्घटनाएँ हैं ? और अयं सभासदो, मेरी ओर देखो । मैं तुम्हारे देश की लाख-लाख अवमानित, लांछित और अकारण दण्डित बेटियों में से एक हैं। कौन नहीं जानता कि इस घृणित