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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की अात्म-कथा उपाय भी पिस जायगा १ अवधूत अघोर भैरव ने महामाया को डाँटते हुए कहा था---'तुम त्रिपुर भैरवी की लीला नहीं रोक सकतीं, तुम महा- कान का कुटनृत्त नहीं थमा सकतीं, तुम शूलपाणुि की मुण्डमाल की रचना में बाधा नहीं दे सकतीं--क्योंकि तुमने अपने को संपूर्ण रूप में त्रिपुर भैरवी के साथ एक नहीं कर दिया। जिस दिन तुम स्वयं उनसे अभिन्न हो जाअोगी उसी दिन इस लीला को चाहे जिधर मंड़ सकती हो । भोली, त्रिपुर सुंदरी को जितना दे दोगी उतना ही तुम्हारा अपना सत्य होगा | क्या सचमुच जनता के दुःख को तुमने अपना दुःख समझ लिया है ? मैं कहता हूँ महामाया, मत्यवादिनी बनो, प्रपंच छोडी । तुमने अमृत के पुत्रों को संवोधन किया है, क्या तुम स्वयं अमृत की पुत्री बन सकी हो १ तुमने जो कहा है वह करके भी दिखा सकती है। जब तुम अपने आपको नि:शेष भाव से उनके चरणों में समर्पराई कर दोगी । वाग्वीर होना अपना ही अपमान करना हैं । यदि त्रिपुर भैरवी की लीला को दूसरे रूप में देखना चाहती हो तो स्वयं त्रिपुर भैरवी बने बिना उपाय नहीं है । दुर्घटकाल अा रहा है ! महामाया ने अविकृत रह कर उत्तर दिया था-आशीर्वाद लेने आई हूँ।' अवधूत ने इस पर डपट कर कहा था-'मिथ्या है, पाखण्ड है यह । तुम्हारे आशीर्वाद के लिये सारा जगत् व्याकुल है। तुम महाशक्ति की प्रतीक हो, मैं तुम्हें त्रिपुर भैरवी के रूप में देख कर कृतार्थ हूँगा । मैं सारे जीवन नारी की उपासना करता रहा हूँ। मेरी साधना अपूर्ण रह गई है। तुम विशुद्ध नारी बन कर मेरा उद्धार करो-विशुद्ध नारी-त्रिपुर भैरवी ! महामाया ने गले में चले बाँध कर गुरु को प्रणाम किया और त्रिशूल उठा कर खड़ी हो गई। बोलीं-‘देश शिरोधार्य है गुरुदेव ।। उनको अखिों से विचित्र ज्योति झड़ने लगी, उनका मुख-मण्डल मध्याह्न सूर्य के समान जल उठा। गुरु ने मेरुदण्ड सीधा किया, भृकु- टियाँ ऊपर उठाई और देर तक उस तेजो मण्डित में मुख आँखें