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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भट्ट की आत्मकथा मूंदकर चुपचाप बैठने का अभ्यास कराया। सायं संध्या के बाद अभि- नथ आरम्भ हुअा। युवराज भट्टारक अर चुके थे । अभिनय बहुत सुन्दर हो रहा था । निपुणिका सानुमती की भूमिका में उतरी थी। उसकी मनोहर अंग-लता उस दिन मालती कुसुम की अभिराम माला से बड़ी कमनीय लग रही थी । उसकी कवरों में लंबित अशोक-पल्लव और कानों में झूलनेवाला गंडविलंवि-केसर शिरीष पुष्प उसकी शोभा को सौ-गुना बढ़ा रहे थे। वह उसी वेश में भत्तवारी के ठीक पीछे खड़ी होकर अभिनय देख रही थी । अन्तिम अङ्क का अभिनय शुरू हुआ। में भी संयोगवश निपुणिका के पास ही खड़ा होकर अभि- नय देखने लगा । जटिल बटु मारीच की भूमिका में मंच पर आया । उसने अद्भुत चेष्टाएँ शुरू की। रह-रहकर वह् दर्शकों की अोर ताक लेता था, वह जान लेना चाहता था कि लोग उसका अभिनय पसन्द कर रहे हैं या नहीं। फिर वह पीछे फिरकर नेपथ्य की ओर भी ताक लेता | एक मुहूर्त भी वह स्थिर नहीं बैठ सका। मेरा सारा किया- कराया चौपट हुआ। जा रहा था। सामाजिकों के चेहरों पर विनोद की। हँसी मंड़राने लगी । मैंने व्याकुल भाव से कहा--- ‘सव चौपट हुआ निउनिया !’ निपुणिका ने मुझे देखा तो एक क्षण के लिये चिन्तित हो गई, फिर बाली, 'कुछ नहीं बिगड़ा है भट्ट, तुम मारीच की भूमिका में उतरने की तैयारी करो। मैं इसे संभालती हूँ।' इतना कहकर बह तितली की तरह नाचती हुई रंग-मंच पर पहुंच गई ! उसने अपना बाँयाँ हाथ कट-देश पर रखा और चंचल चारी के साथ उद्धर्त-नर्तन से रंगमंच को झंकृत कर दिया । मूर्ख जटिल उठकर खड़ा हो गया । निउनिया ने दाहिने हाथ से उसको दाढ़ी पकड़ी और सप्रश्रय कण्ठ से कहा---'नागर मेरे, नाचोगे नहीं १ क्षण भर में सारा वातावरण हास्यमय हो गया । जटिल वटु ने उचकना शुरू किया; पर निउनिया ने उसकी दाढ़ी छोड़ी नहीं । प्रत्येक उछल-कूद के साथ वह रहस्य भरे