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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाणु भट्ट की अात्म-कथा परिचारिका तक के और गणिका से लेकर वार विलासिनी तक के सैकड़ों भेद नहीं हैं। वे सब रानी हैं, सब परिचारिका हैं । तुम उनके दुर्धर्ष रूप को हो, जानते हो, उन के कोमल हृदय को एकदम नहीं जानते है क्यों भट्ट, ऐसा क्या नहीं हो सकता कि ऊँची भारतीय साधना उन तक पहुँचाई जा सके और निकृष्ट सामाजिक जटिलता यही से हटाई जा सके । जब तक ये दोनों बातें साथ-साथ नहीं हो जाती तब तक शाश्वत शान्ति असंभव है। महामाया अाधा ही देख रही हैं । बौद्ध संन्यासियों ने भी श्राधा ही देखा था । भट्ट, तुम यदि इस पूर्ण सत्य का प्रचार करो तो कैसा हो ! मैंने विनीति भाव से उत्तर दिया---'मैं नया सुन रहा हूँ देवि । तुम जो भी आदेश दोगी, वह मेरे सिर माथे होगा । भट्टिनी के वकिम अपांग विकसित हो गए, चेहरा मध्याह्नकालीन तरु-मल्लिका कुसुम के समान खिल गया । बोलीं-मुझे भागवत धर्म में यह ,पूर्णता दिखाई देती है भट्ट ! मेरी उत्सुकता और बढ़ गई । मैंने अधिक सुनने की आशा से पूछा-'मैं किस काम आ सकता हूँ देवि । भट्टिनी ने दीप्त कंठ से कहा-'तुम १ तुम इस आर्यावर्त के द्वितीय कालिदास हो, तुम्हारे मुख से निर्मल वाग्धारा झरती रहती है, तुम्हारा अन्तःकरण पर कल्याण कामना से परिशुद्र है, तुम्हारी प्रतिभा हिम-निर्झरिणी की भाँति शीतल और धवल है, तम्हारे मुख में सरस्वती का निवास है ! तुम इस म्लेच्छ कही जाने वाली निर्दय जाति के चित्त में समवेदना का संचार कर सकते हो, उन्हें स्त्रियों का सम्मान कराना सिखा सकते हो, बालकों को प्यार करना सिखा सकते हो । भट्ट, तुम इस भव-कानन के पारिजात हो, तुम इस मरुभूमि के निर्भर हो । तुम्हारी वाणी मेरी जैसी अबलाओं में भी आत्मशक्ति का संचार करती है । तुम्हारी छाया पाकर अबलाएँ भी इस देश की सामाजिक जटिलता को कुछ शिथिल कर सकती हैं।