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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाणे भट्ट की आत्म-कथा भट्टिनी की ओर वह देर तक देखता रहा। इस बीच निपुणिका प्रकृ- तिस्थ हो गई थी। उसने भी गद्द् कंठ से कहा-‘विश्वासघातिनी नियुणिका क्षमा याचने योग्य भी नहीं है अार्य । परन्तु मेरी अन्त- रात्मा ने आज तक मुझे इस विश्वासघात के लिये दोषी नहीं बताया। आर्य को संकट में छोड़ देने का दुःख मुझे बहुत था और मुझसे भो अधिक भट्टिनी को था } प्रथम सुयोग मिलते ही भट्टिनी ने तुम्हें बचाने का प्रयत्न किया था। पर तुम्हें कष्ट तो हुआ ही आयं ।' बुद्ध की अखिों में असू आ गए। बोला, “अगर मुझे जीवित जला दिया गया होता तो भी मुझे उतना दु:ख नहीं होता बेटी, जितना तिल-तिले कर के पश्चात्ताप की अग्नि में जलने से हुआ है। हाय, जब मैं कुमार कृष्ण के धर अचानक बुला लिया गया उसी समय किसी ने देवपुत्र- नंदिनी का यथार्थ परिचय बता दिया होता तो मैं परिप की अग्नि में इस प्रकार न जलता । इस बार भट्टिनी ने टोका-‘ार्य को कोई दण्ड दिया गया था क्या ! वृद्ध ने उत्तर दिया-दण्ड कहाँ दिया गया बेटी, मैं कुछ समझ ही नहीं सका कि इतने बड़े अपराध के लिये मैं शूल-विद्ध क्यों नहीं किया गया ! वृद्ध थोड़ी देर तक अखि बन्द कर के कुछ सोचता रहा । फिर भट्टिनी की ओर देख कर बोला-बेटी, तुम्हारे चले जाने के बाद से मैं बहुत दुःखी रहा हूँ। मुझे बराबर ऐसा लगता रहा है कि मैंने अपने अन्नदाता की सेवा में प्रमाद किया है, तुषानल में जलने पर भी मेरे पाप का प्रायश्चित नहीं होगा, परन्तु देवि, बेटी, अाज मुझे ऐसा लगता है कि मेरा विश्वास हिल गया है । तांत्रिक योगी ने अाज से पन्द्रह वर्ष पूर्व जो भविष्यवाणी की थी वह अक्षरशः सत्य सिद्ध हो रही है। आज मैं संभवतः जीवन का सब से बड़ा सत्य देख रहा हूँ। मेरा रोम-रोम सिहर रहा है ।। भट्टिनी ने आश्चर्य-पूर्वक पूछा---'तांत्रिक योगी ने क्या कहा