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बाण भट्ट की आत्म-कथा

बाण भइ की अमि-कथा | ‘महामाया के चेहरे पर कोई विकार नहीं दिखा। वे शान्त भाव से बोलीं- “महाराज, आज तक मैंने अपने भीतर जो संघर्ष चलने दिया है वह आज समाप्त हो गया है । त्रिपुर सुन्दरी का आदेश आज मिल गया है। यदि इसके बाद भी मैं श्रापके अवरोध-गृह में बंधी रहती हैं तो अमंगल निश्चित है। देखिए महाराज, ध्यान से देखिए, अाज देवी की मूर्ति हँस रही है। ऐसा दुनिमित्त मैंने पहले कभी नहीं देखा था । महाराज, मैंने रात में देवी का दर्शन पाया है। विंध्य- मेखला के धूम्रगिरि से मुझे खींचने के लिए बड़ी जब दस्त आकर्षण वार्ण सुनाई पड़ी है । देवी ने मुझे निश्चित रूप से बताया है कि मैं आज ही यदि महाराज से अपना संबंध विच्छेद नहीं कर देती तो दुनिमित्त महाराज का सत्यानाश कर देगा। महाराज मैंने देखा है। कि सहस फण अजगर सारे मोखरि वंश के चाट रहा है ।--कहते- कहते रानी का गला भर आया । अ९ि मे अखें इबडबा श्राई और सारा शरीर रोमांचित हो उठा । घुटनों के बल बैठ कर उन्होने कहा --

  • अपराध क्षमा करें महाराज, संन्यासिनी बने बिना मैं आप से संबंध

नहीं त्याग सकती । लोक और शास्त्र की मर्यादा को अक्षुण्ण रखने का दूसरा रास्ता नहीं है ।। ‘महाराजे थोड़ी देर तक महत होकर बैठे रहे। फिर बोले, 'आज तक मैंने तुहारी किसी इच्छा का विरोध नहीं किया। केवल एक बार तुम मेरी इच्छा में बाधा देने से विरत हो जायो !” रानी ने कृतज्ञतापूर्वक कहा----‘क्या इच्छा है महाराज !” 'देवि, मुझे संदेह हो रहा है कि कोई वशीकरण का अभिचार कहीं किया जा रहा है । यह मेरे पाप चित्त की कलुष चिन्ता भी हो सकती है, परन्तु मैंने निष्कपट भाव से अपने विचार प्रकट किए हैं। यदि अनुज्ञा हो तो मैं एक बार धूम्रगिरि जाकर सब कुछ देख श्राऊ । तब तक अन्तःपुर में रहने का प्रसाद हो । मेरे साथ अपने किसी