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बाण भट्ट की आत्म-कथा

५२ बाण भट्ट की आत्म-कथा महात्मा के दर्शन बिना तो नहीं टला जाता है। ' वृद्ध ने हँसते हुए कहा-'ज़रूर दर्शन कीजिए; पर सावधान रह कर । कब सिर पर डण्डा बैठा देगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। यह कह कर वृद्ध वहाँ से चलते बने। मैं भी प्रांगण से दूर हट कर वृद्ध पुजारी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगा ।' कुछ देर बाद पुजारी निकले । चण्डी-मन्दिर के गर्भ गृह में ही वे सोए हुए थे। उनकी अखेिं लाल थीं । वृद्ध ने उनका जैसा रूप वर्णन किया था, वे वैसे ही थे । चण्डी-मण्डप से निकल कर उन्होंने कुछ मन्त्र पढ़े। फिर हाथ के डिब्बे से काला सा चूर्ण निकाल कर उस प्रांगण-गृह की ओर फेंका, जिसमें हम लोगों ने अाश्रय लिया था। जल्दी-जल्दी वे उस घर की ओर बढे, दो-एक बार शीघ्रता के कारण लड़खड़ा भी गए । प्रांगण-गृह के द्वार पर उन्होंने चुण निक्षेप किया और सँभाल कर अगल से तालपत्र की पोथी निकाल उसे सामने कर लिया । फिर उन्होंने ज़ोर-जोर से द्वार पर धक्का मारा। निपुणिका सावधानी से बाहर आई और लीला कटाक्ष से एक बार वृद्ध साधु की ओर देखा । फिर तो पुजारी के श्रद्धवशिष्ट ऊपर वाले दाँत बाहर निकल आए और सूखे हुए कपोलों पर अनुराग की हरीतिमा दौड़ गई । बहुत दिनों के बाद उनका तन्त्र सफल हुआ था । वे उस महा- वर-लिखित तालपत्र की पोथी को बराबर सामने लिए हुए थे। यद्यपि निपुणिका ने उस पोथी की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया, तथापि यह तो स्पष्ट ही जान पड़ता था कि वे इस विजय को उस पोथी का ही सुपरिणाम समझ रहे थे । शायद उन्हें यह आशंका थी कि पोथी सामने से हटा लेने पर वशीकरण का प्रभाव जाता रहेगा। मैं दूर बैठा यह कौतुक देख रहा था । निपुणिका ने क्या कहा, यह तो मुझे नहीं - • --- --------- १ कादम्बरी के जरविड़ धार्मिक' से तुलनीय